फिर से वो पेपर पढ़ने की होड़ मचेगी जमघट में। फिर से पानी वाली गगरी छलक पड़ेगी पनघट में। फिर से वो स्कूल का रिक्शा भरकर बचपन को निकलेगा। फिर से वो कुल्फी का ठेला नुक्कड़-गलियों में निकलेगा। फिर से गूंज उठेगी वो सब बंद पड़ी सी आवाज़े। फिर से चाय के साथ मे होंगी इधर उधर की सब बातें। फिर से वो भागमभाग मचाता कल वापस लौट के आएगा। कोई संकट कहाँ बचा है? ये भी जल्दी टल जाएगा। फिर से वो पेपर पढ़ने की होड़ मचेगी जमघट में। फिर से पानी वाली गगरी छलक पड़ेगी पनघट में। फिर से वो स्कूल का रिक्शा भरकर बचपन को निकलेगा। फिर से वो कुल्फी का ठेला नुक्कड़-गलियों में निकलेगा।