नज़र की नज़र को कहां कुछ नज़र आता है, दिल है बेचैन कहां कुछ समझ आता है, बढ़ रही नजदीकियां या फासला दर्मियां है? सब कुछ है फना, सबर भी कहा ठहर पाता है।। रास्ते सभी बंद बंद से नज़र आ रहें हैं, अपने भी मुझसे अब नज़र चुरा रहें हैं, क्या है लिखा ज़िंदगी तूने तकदीर में मेरी? रंग बदले बदले से क्यों सबके नज़र आ रहें हैं? #poem #hindipoetry