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हाड़ माँस का पिंजर तेरा, दो दिनन का है रैन बसेरा। क

हाड़ माँस का पिंजर तेरा, दो दिनन का है रैन बसेरा।
क्यों करता है इससे प्यार, जिसका नही कोई सवेरा।।
माया, मोह का जाल बिछा है,हर ओर अंधेरा नाच उठा है।
हर चीज सुहानी लगती है,पर कुछ भी न तेरा है न मेरा।।
आत्म निरीक्षण करके देख, प्रभु का नाम भजकर देख।
मोहजाल का काट यही है,प्रभु का जहाँ बसेरा है ।।
जन्म मरण का चक्कर है,काल चक्र की परीधि का ।
बचपन बीता, आई जवानी,कल फिर किसने देखा है।।
समय का पहिया घूम रहा है,कोई हमें अब ढूंढ रहा है।
इसी काल के दाँतों का,बनना सबको चबेना है ।।

©Shubham Bhardwaj
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