#रंज सफ़र तेज़ी से गुजरा, तुम्हारे साथ होने से। अलग फिर हो गई रंगत, तुम्हारी बात करने से। वो राहें आज भी अक्सर, मुझे आवाज़ देती हैं, महक तेरे क़दमों की, जिन्हें गुलज़ार करती थीं। जो कलियां ओस की बूंदों से कभी खुद को सजाती थीं, अभी वीरान हैं वो सब, पर तुम्हें ही गुनगुनाती हैं। पवन तो आज भी बहती है, मगर वो बात ही है कहां, जो तेरे जिस्म को छूकर, शरम से गुनगुनाती थी। निकलता चांद है अक्सर, यही अब सोचकर घर से कभी फिर से मिलोगी तुम, उसी छत की मुंडेरी पे। जो राहें छोड़कर जाती हैं, कभी बापिस नहीं आतीं। ये सब मालूम है मुझको, पर अभी तक राह तकता हूं। ~रविकांत यादव