हँसते-हँसते जो सारे दुखों को सह लेती हैं, बहा दो जिस दिशा में बस वैसे बह लेती हैं, चाहे कठपुतली हो हाथों की या नाचता घुँघरू हो, उसे जैसे भी नचालो बस वैसे कह लेती हैं, ना जाने क्यों उन पर हैं ये रीति-नीति चलती, वो तो अपने जग में भी बस ऐसे रह लेती हैं... आप सभी को बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। एक एक कविता हमारे संस्कारों को दृढ़ बनाती है। कोई कह सकता है कि बेटियों पर कविताएँ लिखने से समाज में बेटियों को वह सम्मान मिल जाएगा क्या। लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है हमारा लिखा हुआ एक भी शब्द बेकार नहीं जाता क्योंकि वह शब्द कम से कम हम पर तो असर करता ही है। हम से समाज का निर्माण होता है। तो आइए बेटियों के लिए आज अपने शब्दों को समर्पित करें। #बालिकादिवस #बेटियाँ