ख्वाबों के घरौंदे में मैंने, ख्वाहिशें सजाई है, पूरे कर दो अर्जी मेरी, जो दर तेरे लगाई है। हूँ नादान मैं बेटी तेरी, एक माटी का पुतला, सुन पुकार अब मेरी, तुझसे आस लगाई है।। ले दिया माटी का कब तक फिरूँ मैं मारी मारी, भटक रही बगिया में तेरे, मैं अकेली दुखहारी। सोचा तुझको अपना, एक सहारा है तेरा पाया, हर लो संकट मेरा, मैं जाऊँ तुझ पर बलिहारी। बचपन भी छूटा, अधूरी रह गई चाहते हमारी, खो गए सफ़र में, पिंजड़े में कैद दास्ताँ हमारी। कैसे बढूँ आगे, राहें नज़र नही है आती मुझको, बेचैन हूँ कबसे, समस्या सुलझा जा तू हमारी।। इस छोटी सी जिन्दगी में, ना जाने कितने गम है, कोई खुश दिखे ना मुझको, सबकी आँखें नम है। आ करके थाम लो, अपनी बनाई इस दुनियाँ को, सबको दिखा दो ना राघव, तुझमें कितना दम है। प्यासी है जी नैनन मेरे, तरस रहे है दीदार को तेरे, जला कर आग, उसमें तुझको निहारते नयन मेरे। सुध बुध भी बिसराया, खोई हू पहचान मैं अपनी, नाम से तेरी जानी जाऊं, यही अर्ज है अब मेरे।। ♥️ Challenge-909 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।