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"The Last Letter " *अनकहे जज़्बात

 "The Last Letter "
                *अनकहे जज़्बात * #the_last_letterr💌

पता नहीं "रानी" मैं तुम्हारी एहसासों को बया कर भी पाउँगा या नहीं, मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि कोई पढ़े इसे.... बस इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मैं पढू,, और तुम्हारी उस मासूम बातों को याद का मुस्कुरा उठु...... हाँ तुम जानती हो जब भी मैं उदास होता हूँ तो मुझे ऐसे लम्बा लिखने की आदत है....... अब कहुँ तो किससे कहुँ,, इसलिए लिखते वक्त जब तेरा ख़्याल आता है तो गमों का पहाड़ भी नीलगिरि की झरने सा बह जाती है......


मैं कैसे भूल सकता हूँ आज के दिन को,आज के दिन ही तो तुम मुझे उनके पास लेकर जाती थी,जिन्हें तुम सबसे ज्यादा मानती थी और मैने उन्हें कभी माना ही नहीं।तुम चलो मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ कहकर मैं रुक जाता था,तुम आगे बढ़ जाती थी लेकिन मैं मंदिर में जाने की बजाय बाहर ही रुक जाता था क्योंकि मुझे भगवान में विश्वास नहीं था और बाहर रुक कर अपने मन में बोलता था "पता नहीं क्यों तुमको ही उनसे इतनी उम्मीदें हैं,तुम ही जानो मेरी बला से,हम तो कभी भी ना जाएँ मंदिर के अंदर" लेकिन तुम बखूबी वाक़िफ थी!हमारी हरकतों से इसलिए मंदिर के अंदर जाकर वापस बाहर आती
और बोलती मन में
"भगवान जी को भला बुरा कह लिया हो तो बोलिए आपकी पूजा करलूँ जो यहाँ पर आप लंगूर के जैसे मुँह बनाकर बैठे हैं,चलिए उठिये चुपचाप से और अंदर चलकर पूजा करिये"
 "The Last Letter "
                *अनकहे जज़्बात * #the_last_letterr💌

पता नहीं "रानी" मैं तुम्हारी एहसासों को बया कर भी पाउँगा या नहीं, मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि कोई पढ़े इसे.... बस इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मैं पढू,, और तुम्हारी उस मासूम बातों को याद का मुस्कुरा उठु...... हाँ तुम जानती हो जब भी मैं उदास होता हूँ तो मुझे ऐसे लम्बा लिखने की आदत है....... अब कहुँ तो किससे कहुँ,, इसलिए लिखते वक्त जब तेरा ख़्याल आता है तो गमों का पहाड़ भी नीलगिरि की झरने सा बह जाती है......


मैं कैसे भूल सकता हूँ आज के दिन को,आज के दिन ही तो तुम मुझे उनके पास लेकर जाती थी,जिन्हें तुम सबसे ज्यादा मानती थी और मैने उन्हें कभी माना ही नहीं।तुम चलो मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ कहकर मैं रुक जाता था,तुम आगे बढ़ जाती थी लेकिन मैं मंदिर में जाने की बजाय बाहर ही रुक जाता था क्योंकि मुझे भगवान में विश्वास नहीं था और बाहर रुक कर अपने मन में बोलता था "पता नहीं क्यों तुमको ही उनसे इतनी उम्मीदें हैं,तुम ही जानो मेरी बला से,हम तो कभी भी ना जाएँ मंदिर के अंदर" लेकिन तुम बखूबी वाक़िफ थी!हमारी हरकतों से इसलिए मंदिर के अंदर जाकर वापस बाहर आती
और बोलती मन में
"भगवान जी को भला बुरा कह लिया हो तो बोलिए आपकी पूजा करलूँ जो यहाँ पर आप लंगूर के जैसे मुँह बनाकर बैठे हैं,चलिए उठिये चुपचाप से और अंदर चलकर पूजा करिये"