साहिब ये जिन्दगी यूँ ही खिलखिलाने की वज़ह ढूंढ लेती है। हो कितने भी ग़म आसपास, मुस्कुराने की वजह ढूंढ लेती है।। कभी ख़ुद सम्भल कर, तो कभी औरों को भी संभालते है हम, समस्त मानव के दर्द को मिटा सके जो, वो दवा ये ढूंढ लेती है। नही डूबने देते है किसी को भी, करते है हर सम्भव प्रयास हम, हर एक डूबी हुई नांव की कश्ती का, ये तो किनारा ढूंढ लेती है। कदम से कदम मिलाकर चलते , चाहे जितने हो राहों में शूल, गिरते कदमों को नेह, अपनों के बांहों का सहारा ढूंढ लेती है। नही रखते बैर किसी से, सबसे भाईचारा का व्यवहार है रखते, हर गिले शिकवे के बीच हम, अपनों का अपनत्व ढूंढ लेती है। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही बैकग्राउंड में होना चाहिए, इसके सिवा अगर कुछ हुआ, तो रचना मान्य नहीं होगी।