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✍बृम्ह क्या हैं....! ब्रम्ह क्या हैं, क्या ब्रम्ह

✍बृम्ह क्या हैं....! ब्रम्ह क्या हैं, क्या ब्रम्ह का मतलब ब्रह्मा से हैं या ब्रम्ह ब्राह्मण को सम्बोधित करता हैं। और अगर ऐसा नही हैं, तो फिर ब्रम्ह का अर्थ क्या हैं....?

ब्रम्ह जैसा की उस नाम से ही स्पष्ट हो जाता हैं, ब्रम्ह अर्थात् रचियता। और इसी से एक चीज और निकल कर आती हैं, ब्रह्माण्ड अर्थात् "ब्रम्ह का अंड" यानी वो पिंड जिससे जीवन की, विकास की, अस्तित्व की और सृष्टि की शुरुवात हुई। तो फ़िर असल मे ब्रम्ह हैं कौन, यही प्रश्न सबके मन मे उठता हैं। सृष्टि के रचियता ब्रम्हा हैं, तो बहुत से लोग उन्हे ही ब्रम्ह जानते हैं। कुछ लोगो ने ब्रम्ह को सीधे तौर पर ब्राह्मण से जोड़ दिया हैं।
मगर ब्रम्ह सिर्फ वह हैं जो काल के प्रत्यक्ष हैं। अब काल के प्रत्यक्ष कौन हैं, यह सवाल उठता हैं। क्योकी शास्त्रों और वेदो के अनुसार, महादेव, महाकाली और शनि काल से परे तो हैं, मगर काल के प्रत्यक्ष नही हैं। अर्थात् यह काल को देख सकते हैं, यानी आने वाला और बिता हुआ भी देख सकते हैं, उसके फल को बदल भी सकते हैं ,मगर काल को नही बदल सकते। काल को बदल पाना उसके लिये सम्भव हैं, जो काल के प्रत्यक्ष हैं, या यूँ कहे स्वयं काल की ही वह चाल हैं।
अब इस तथ्य को समझने के लिये हमे, शिव, शंकर और महेश मे अन्तर क्या हैं यह समझना होगा।
क्योकी शिव जो हैं, वही शून्यता हैं। अर्थात् ब्रह्माण्ड का वह अंड जो हैं तो सब हैं और जिस दिन वह पृसुप्त अवस्था मे चला गया तो सब ही शून्य मे विलिन हो जायेगा। शिव वही हैं, जिन्होने संसार को चलाने के लिये त्रिदेवों की रचना की। जिन्हे बृह्मा, विष्णु और महेश कहाँ जाता हैं। ब्रह्मा रचियता, सिर्फ सृष्टि के। क्योकी ब्रह्माण्ड का नित नवीन सृजन तो कोई और ही कर रहा हैं।
शंकर वही हैं, जिन्हे हम आदियोगी, भोलेनाथ और महादेव के नाम से जानते हैं, अर्थात् गौरी, माँ पार्वती के पति। 
और महेश अर्थात् संहारक या यूँ कँह सकते हैं, की उस अंड का वह रूप जो नित संहार कर रहा हैं ।
✍बृम्ह क्या हैं....! ब्रम्ह क्या हैं, क्या ब्रम्ह का मतलब ब्रह्मा से हैं या ब्रम्ह ब्राह्मण को सम्बोधित करता हैं। और अगर ऐसा नही हैं, तो फिर ब्रम्ह का अर्थ क्या हैं....?

ब्रम्ह जैसा की उस नाम से ही स्पष्ट हो जाता हैं, ब्रम्ह अर्थात् रचियता। और इसी से एक चीज और निकल कर आती हैं, ब्रह्माण्ड अर्थात् "ब्रम्ह का अंड" यानी वो पिंड जिससे जीवन की, विकास की, अस्तित्व की और सृष्टि की शुरुवात हुई। तो फ़िर असल मे ब्रम्ह हैं कौन, यही प्रश्न सबके मन मे उठता हैं। सृष्टि के रचियता ब्रम्हा हैं, तो बहुत से लोग उन्हे ही ब्रम्ह जानते हैं। कुछ लोगो ने ब्रम्ह को सीधे तौर पर ब्राह्मण से जोड़ दिया हैं।
मगर ब्रम्ह सिर्फ वह हैं जो काल के प्रत्यक्ष हैं। अब काल के प्रत्यक्ष कौन हैं, यह सवाल उठता हैं। क्योकी शास्त्रों और वेदो के अनुसार, महादेव, महाकाली और शनि काल से परे तो हैं, मगर काल के प्रत्यक्ष नही हैं। अर्थात् यह काल को देख सकते हैं, यानी आने वाला और बिता हुआ भी देख सकते हैं, उसके फल को बदल भी सकते हैं ,मगर काल को नही बदल सकते। काल को बदल पाना उसके लिये सम्भव हैं, जो काल के प्रत्यक्ष हैं, या यूँ कहे स्वयं काल की ही वह चाल हैं।
अब इस तथ्य को समझने के लिये हमे, शिव, शंकर और महेश मे अन्तर क्या हैं यह समझना होगा।
क्योकी शिव जो हैं, वही शून्यता हैं। अर्थात् ब्रह्माण्ड का वह अंड जो हैं तो सब हैं और जिस दिन वह पृसुप्त अवस्था मे चला गया तो सब ही शून्य मे विलिन हो जायेगा। शिव वही हैं, जिन्होने संसार को चलाने के लिये त्रिदेवों की रचना की। जिन्हे बृह्मा, विष्णु और महेश कहाँ जाता हैं। ब्रह्मा रचियता, सिर्फ सृष्टि के। क्योकी ब्रह्माण्ड का नित नवीन सृजन तो कोई और ही कर रहा हैं।
शंकर वही हैं, जिन्हे हम आदियोगी, भोलेनाथ और महादेव के नाम से जानते हैं, अर्थात् गौरी, माँ पार्वती के पति। 
और महेश अर्थात् संहारक या यूँ कँह सकते हैं, की उस अंड का वह रूप जो नित संहार कर रहा हैं ।