एक शहर बनारस सा, एक "नज़र" दीवानी सी, हर शाम मयस्सर हो, वो घाट बनारस की। हां मैं बनारस की नहीं हूं, पर मैं जब से वहां गई हूं, उसी की हो गई हूं। ये जगह ही कुछ ऐसी है, जैसे खींचती हो। और मैं चली ही जाती हूं किसी न किसी बहाने से। घंटो वहां घाट पर बैठ कर गंगा नदी को निहारना, वो भी किसी सुकून से कम नहीं इस शोर भरी ज़िन्दगी में। #hindipoetry