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... विकास सर की ग़मगीन आंखें देखकर मेरा भी हृदय प

...  विकास सर की ग़मगीन आंखें देखकर मेरा भी हृदय पीड़ा से चीत्कार उठा, मैं अबतक ऐसे मुद्दों पर खुले तौर से इन लूप होल्स पर धर्मग्रन्थों की आलोचनायें करता रहा हूँ. परन्तु अब आज के बाद मैं जीवनभर मौन ही रहना चाहूंगा. अन्तर्रात्मा तक सर की अंत में रुंधती हुयी व्याकुल आवाज सिहर गयी है, मुझे यदि ईश्वर और गुरू के मध्य कभी श्रेष्ठतम का चुनाव करना पड़े तो मैं गुरू का ही चुनाव करूँ. आज कुछ करने को जी ही नहीं कर रहा, आजतक मैं समझता था कि चर्चा एवं संवाद की धरती, जहाँ एक ही धर्म अथवा देश में विभिन्न मतों को पूजा जाता रहा है, वहाँ किसी भी प्रकार की तार्किक परिचर्चा को सामाजिक भय का सामना तो नहीं करना पड़ेगा, परन्तु मैं गलत था. यदि किसी लोकतांत्रिक देश का समाज अलोकतांत्रिक होने लगे, तो क्या किया जाये? जब कहीं दक्षिण पंथी धर्म की कुत्सित राजनीति अपने राष्ट्र की मूर्धन्य वैज्ञानिक एवं तर्कशील विद्वानों, गुरुजनों व मेधाओं को भयाक्रांत कर दे, तो ऐसे में उस राष्ट्र को अपने उत्थान के स्वप्न नहीं देखने चाहिए. विकास सर को मिलने वाली धमकियों की बात को नज़रअंदाज़ बिल्कुल नहीं किया जा सकता, भारत में बढ़ते धार्मिक हत्याओं के सिलसिले हमारे कलेजों को कंपा देते हैं. ये घटनाएं अब हमें बता रही हैं, कि प्राचीन काल में शिक्षा एवं शोध के संस्थान गुरुकुल, मुख्य नगरीय राजनीति की परिधि के नगण्य आबादी वाले विरान सीमांत प्रदेशों में क्यों होते थे, संभवत: वे गुरु-शिष्य जितनी स्वतंत्रतापूर्वक वहाँ ज्ञान शोध करने में समर्थ रहे होंगे उतना राज्य या शासन के केन्द्र के समीप नहीं. मैं भारतीय समाज में ज्ञान एवं ज्ञानियों के उचित सम्मान के साथ भय विहीन जीवन एवं स्वतंत्र कर्मक्षेत्र की कामना करता हूँ.

#vikasdivyakirti 
#teacher 
#socialmedia 
#threat 
#freedom 
#research
...  विकास सर की ग़मगीन आंखें देखकर मेरा भी हृदय पीड़ा से चीत्कार उठा, मैं अबतक ऐसे मुद्दों पर खुले तौर से इन लूप होल्स पर धर्मग्रन्थों की आलोचनायें करता रहा हूँ. परन्तु अब आज के बाद मैं जीवनभर मौन ही रहना चाहूंगा. अन्तर्रात्मा तक सर की अंत में रुंधती हुयी व्याकुल आवाज सिहर गयी है, मुझे यदि ईश्वर और गुरू के मध्य कभी श्रेष्ठतम का चुनाव करना पड़े तो मैं गुरू का ही चुनाव करूँ. आज कुछ करने को जी ही नहीं कर रहा, आजतक मैं समझता था कि चर्चा एवं संवाद की धरती, जहाँ एक ही धर्म अथवा देश में विभिन्न मतों को पूजा जाता रहा है, वहाँ किसी भी प्रकार की तार्किक परिचर्चा को सामाजिक भय का सामना तो नहीं करना पड़ेगा, परन्तु मैं गलत था. यदि किसी लोकतांत्रिक देश का समाज अलोकतांत्रिक होने लगे, तो क्या किया जाये? जब कहीं दक्षिण पंथी धर्म की कुत्सित राजनीति अपने राष्ट्र की मूर्धन्य वैज्ञानिक एवं तर्कशील विद्वानों, गुरुजनों व मेधाओं को भयाक्रांत कर दे, तो ऐसे में उस राष्ट्र को अपने उत्थान के स्वप्न नहीं देखने चाहिए. विकास सर को मिलने वाली धमकियों की बात को नज़रअंदाज़ बिल्कुल नहीं किया जा सकता, भारत में बढ़ते धार्मिक हत्याओं के सिलसिले हमारे कलेजों को कंपा देते हैं. ये घटनाएं अब हमें बता रही हैं, कि प्राचीन काल में शिक्षा एवं शोध के संस्थान गुरुकुल, मुख्य नगरीय राजनीति की परिधि के नगण्य आबादी वाले विरान सीमांत प्रदेशों में क्यों होते थे, संभवत: वे गुरु-शिष्य जितनी स्वतंत्रतापूर्वक वहाँ ज्ञान शोध करने में समर्थ रहे होंगे उतना राज्य या शासन के केन्द्र के समीप नहीं. मैं भारतीय समाज में ज्ञान एवं ज्ञानियों के उचित सम्मान के साथ भय विहीन जीवन एवं स्वतंत्र कर्मक्षेत्र की कामना करता हूँ.

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