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गुज़र रहे हैं उम्र के उस पहर से ख्वाहिशें जहाँ ज़रा

गुज़र रहे हैं उम्र के उस पहर से
ख्वाहिशें जहाँ ज़रा रंगीन होती हैं
शरारतों के बाद वाला सफर है ये
जहाँ गलतियां भी संगीन होती हैजिस्म इंसानी और खुशबु फूलों की
नज़रें गुलाब देखने की शौक़ीन होती है
मर गए जो हम अब आशिक़ कहलायेंगे
सबके नसीब में कहाँ ज़मीन होती है

©ख़ामोशी
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