गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,अच्छी,लगती क्यों नहीं, चुप रही हर चोट, हर प्रहार पर, वेदनाइये,उसकी व्यथा, क्यों किसी को चुभती नहीं, गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,........ रुपरेखा, मापदंड, सीमाएं, मर्यादाएं, क्यों स्त्रियों पर ही थोपी गयी, लूट ली जब आबरू एक बेटी की, चुप रही, ना लड़ सकी, ना बेटा, ना बाप, कौन संभाले, कौन बचाएं, कौन थामेगा हाँथ, डरकर ज़माने की कुरीत से, चाहकर भी माँ चुप रह गयी, पूछती हैं जिज्ञासा..., बेटियां गरजती,...., चाहता था एक बाप बेटी बन जाये अफसर, सीख दी अगर हो गलत चुप रहना नहीं, बोलना डंके की चोट पर, रोकेगा जमाना अगर सच के साथ जाएगी, तिरस्कारेंगे, धिकारेंगे भी तुझे, जो अगर तू कुरीतियों से लड़कर, समाज के बेढंग ढांचे के विरुद्ध जाएगी, पर दहाड़ना तू शेरनी सी, चाहे कितनी भी हो रास्तों में अटकले, तू बन पहाड़ बादलों से लड़ना,और गर्जना..| पर....... पर खामोश हो गयी वो दहाड़, फँस कर इस ज़माने की कुरीतियों के शोर में , पुछती हैं जिज्ञासा मेरी......, बेटियां गरजती,....... ©Sonam kuril गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,अच्छी,लगती क्यों नहीं, चुप रही हर चोट, हर प्रहार पर, वेदनाइये,उसकी व्यथा, क्यों किसी को चुभती नहीं, गरजते बादलों से पूछती हैं जिज्ञासा मेरी, बेटियां गरजती,........ रुपरेखा, मापदंड, सीमाएं, मर्यादाएं,