बहती नदी सा वक़्त कैसा कल कल बहता जाता, रेत के जैसे फिसलन इसकी, हाथ कभी ना आता। क़ीमत जो भी जाने इसकी निरंतर आगे बढ़ता जाता, अनदेखा जो किया इसे जीवन में वो पछताता। घुल मिल लेना सबसे ही तुम, कल का क्या ठिकाना? अभी यहीं हैं किसने जाना, बन जाए गुज़रा ज़माना। वक़्त से पहले वक़्त का होजा, वक़्त में ही ढल जाना, जो इसमें ना ढलता है वो हाथ ही मलता रह जाता। वक़्त रुपी ख़ज़ाने को नष्ट ना करना, व्यर्थ ना करना, कहे में इसकी जो ना रहता, अफ़सोस की धारा बहाता। आलस छोडो, हिम्मत जोड़ो, काम में चित्त लगाना, कौन बिगाड़ेगा क्या तेरा? वक़्त भी बने दीवाना। (बहती नदी सा वक़्त - 02) #kkबहतीनदीसावक़्त #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #nazarbiswas