जिनकी हिफ़ाज़त में इंसान लगे रहते हैं, बेशक वो ख़ुदा महज़ पत्थर के हैं ! -1 चलो फ़िर से घर पे कोई महफ़िल हो, सबके बहाने से उनको भी बुलाया जाए ! -2 तू सैलाब सा बहता है मेरी रग-रग में, मैं ठहरा समंदर सा, तू मौज की रवानी है ! -3 अपनी कलम पे बंदिश मैं लगा नहीं सकता, मैं अपने बे-ज़बां होने से डर जाता हूँ ! -4 शम्मा को तो जलना है, पतंगे से उसे क्या, अपनी ही ज़िद में पतंगे ख़ुद को जला लेते हैं ! -5 ©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़ नागपुर ,प्रोपर औरंगाबाद बिहार स0स0~9231/2017 जिनकी हिफ़ाज़त में इंसान लगे रहते हैं, बेशक वो ख़ुदा महज़ पत्थर के हैं ! -1 चलो फ़िर से घर पे कोई महफ़िल हो, सबके बहाने से उनको भी बुलाया जाए ! -2 तू सैलाब सा बहता है मेरी रग-रग में, मैं ठहरा समंदर सा, तू मौज की रवानी है ! -3