लाख बड़े हो जाओ लेकिन कभी गुमान न करना तुम। हर ऊंचाई चढ़ते जाओ पर अभिमान ना करना तुम॥ जिसका धन ज्ञान परिश्रम और वक्त लगा तेरे होने में। उस अपने एक-एक खुदाया का अपमान न करना तुम॥ इल्म़ बढ़ाओ हुनर बढ़ाओ धन यश वैभव सब विकसाओ। जीवन में जो भी हो अपेक्षित वह सारे सुख साधन पाओ॥ लाख बड़े हो जाओ लेकिन मन में क्लेश न रखना तुम। उस अपने एक-एक खुदाया का अपमान न करना तुम॥ जो भी तुम पाते हो जग में तेरा केवल नहीं है इसमें। जाने किस-किसका रक्त लगा है तेरी हर एक सफलता में॥ उस रक्त की हर एक बूंद का प्यारे कर्ज नहीं भूलाना तुम। उसे अपने एक-एक खुदाया का अपमान न करना तुम॥ माता ने तुम्हें जन्म दिया है माँ धरती के रज पोषित हो। पिता का श्रम स्नेह लगा है और समाज से शिक्षित हो॥ धरती पर जहां भी जाओ निज मिट्टी को न भुलाना तुम। उस अपने एक-एक खुदाया का अपमान न करना तुम॥ मात-पिता गुरु भाई बंधु और स्नेही का मान सदा रखना। मिले दुखि या पीड़ित शोषित उसका ध्यान सदा रखना॥ निज राष्ट्र की उन्नति का परचम सारे जग में फहराना तुम। उस अपने एक-एक खुदाया का आपमान करना तुम॥ आदर्श साहू.....©