मेरी कल्पना का बादल ,आज फूट गया जिसे सोचा था अपना, वह भी आज रूठ गया सोचा था बुढ़ापे का सहारा बनेगा मुझे आराम दे ,वह मेरा सारा कार्य करेंगा। परंतु वास्तविक जीवन नीम रूपी कड़वा है जैसे पीतल के ऊपर वह कुंदन चढ़ा है। क्या क्या सपने संजोए थे अपने नंदन के संग गरल गिरी हटा कदमों से वह भर देगा मेरे बुढ़ापे में रंग। पर कहां पता था यह कल्पना कल्पना ही रह जाएगी मेरी आशा रूपी जलधी मेरे ही अश्रु से छलक जाएगी। जहां बैठा कंधे पर बचपन में कराए खूब सैर सपाटे अब मठ की खाली दीवारों में केवल बेरंगे ख्वाब है आते। उन बिरंगे ख्वाबों को दस्तक दे आवाज वह आती है क्या रह गई परवरिश में कमी दर ब दर यह बात सताती है । जहां मेरे साथी अपने पुत्रों संग ऊंचे नीलायम में रहते हैं वही मैं और मेरी छड़ी आश्रम के खालीपन को सहते हैं। मैं दुखी नहीं, बस खफा हूं अपनी नियति से कभी सोचा था बसाऊंगा उज्जवल सवेरा अब उसी उज्जवल ने छीन लिया सवेरा मेरा।। #नियती #instagrampoets #life #grief