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devanshsharma9921
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Devansh Sharma

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Devansh Sharma

it is good when
Sun strikes those heights
Bestowing  hope with those light
Helping in forgetting plight
Spreading joy and delight 
Pegging Vitamin D as a diet
Making our world a colourful giant #Beauty #instagrampoets#writers_jugalbandi#sunshine#life
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Devansh Sharma

मेरी कल्पना का बादल ,आज फूट गया
जिसे सोचा था अपना, वह भी आज रूठ गया
सोचा था बुढ़ापे का सहारा बनेगा
मुझे आराम दे ,वह मेरा सारा कार्य करेंगा।

परंतु वास्तविक जीवन
नीम रूपी कड़वा है
जैसे पीतल के ऊपर
वह कुंदन चढ़ा है।

क्या क्या सपने संजोए थे
अपने नंदन के संग
गरल गिरी हटा कदमों से
वह भर देगा मेरे बुढ़ापे में रंग।

पर कहां पता था यह कल्पना
कल्पना ही रह जाएगी
मेरी आशा रूपी जलधी
मेरे ही अश्रु से छलक जाएगी।

जहां बैठा कंधे पर बचपन में
कराए खूब सैर सपाटे
अब मठ की खाली दीवारों में
केवल बेरंगे ख्वाब है आते।

उन बिरंगे ख्वाबों को दस्तक दे
आवाज वह आती है
क्या रह गई परवरिश में कमी
दर ब दर यह बात सताती है ।

जहां मेरे साथी अपने पुत्रों संग
ऊंचे नीलायम में रहते हैं
वही मैं और मेरी छड़ी
आश्रम के खालीपन को सहते हैं।

मैं दुखी नहीं, बस खफा हूं
अपनी नियति से
कभी सोचा था बसाऊंगा उज्जवल सवेरा
अब उसी उज्जवल ने छीन लिया सवेरा मेरा।। #नियती 
#instagrampoets
#life
#grief
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Devansh Sharma

परियों में भी जो रानी है
जैसे जीवन का सार पानी है
आशा रूपी है जो धमक
अंधेरे को चीरती है वह चमक ।

उसके केश जैसे सरिता
नयन एक गहरी कविता
दिल को लुभाए ऐसी वाणी
चेहरे पर वह चमक सुहानी ।

कुंदन रुपी ह्रदय लेकर
चंदन रूपी विचार
सतयुग वाली सरस्वती
बस्ती है उसमें चार ।

मस्तिष्क में है ज्ञान का सागर
तो श्रवण रूपी संस्कारी
रंग रूप श्वेत बगुले समान
वह कुमुद है एक पहाड़ी ।

वह चमक है ऐसी विराट
खोल दे अज्ञाती कपाट
चौंधिया कर हर कोना नापा
ऐसी है हमारी चंचल शोभित आभा ।। #light
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Devansh Sharma

चंचल सी वो नयने
सरिता रूपी बाल
कद काठी जैसे मधुबाला
लेख कबीर समान ।
वाणी में बस्ती सरस्वती
सरोज जैसा अभिमान
करुणा रूपी वह बुद्धि
क्रोधित तो दुर्गा समान ।
हर झलक में अलग कला
कंठ में बसती वसुधा है
नृत्य करें तो लगे रुकमणी
हर बोल आशा रूपी घड़ा है ।
तेज प्रताप सा मस्तिष्क लिए
तीव्र चौकस सी चाल
भाषण बोल बैठन तो
हर शब्द में सोमरस विराजमान ।
ग्रहम् में है ग्रहणी
तो दफ्तर में भी दस्तक है
समाज से लेकर व्यापार तक
हर जगह अर्पित उसका मस्तिष्क है ।
कलयुग की देवकी बनी
तो बनी झांसी की रानी
हर कटाष को दूंगी मात
ऐसी वचन है उसने ठानी ।
दिव्य रूप की धनि वो
वह है ममता का सागर
पार्वती दुर्गा सरस्वती
बसते हैं सब इसमें आकर।
उमा का मतलब है दुर्गा
उमा का मतलब पार्वती
मां में बसती है महिमा
वह है एक रूद्र महारथी ।। #MothersDay
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Devansh Sharma

सफरनामा सफर

निकल पड़ा राहों पर
वो लेकर के बड़ी उमंग
पर नहीं पता उस मानुष को
मिलेंगे गड्ढे आनंग

वह गड्ढे वह पीड़ा
हर पथ विष रूपी कीड़ा
उन बेरंगी डलानो पर
जल भी था अति जहरीला

डगर डगर स्वागत हुआ
उसका उन सुमन से
जिनकी पहचान होती थी
कालकूट समान रंग से

पर वो विजय ही क्या
जो मिल गई पलक झपकते संग
विजय कहो उस सम्राट को
जो निचोड़ ले शरीर का रासायनिक रंग

लक्ष्य बड़ा हो या छोटा
उसको पाना उसका वर्चस्व दिखाता है
जो झेल ले तीव्र तरंगों को
वहीं उच्च शिखर को चूम जाता है

सफल वह नहीं जो धन कमा ले
सफल है वह जो मृत्यु के बाद भी
दुनिया के चक्षु पर
अपनी यादों की ओस ला दे

हर मनुष्य में है कला
बस उसे निखार के लाना है
भाई‌‌ जरा हंस के तो देख
आधी जीत का तो वही ठिकाना है

हर परिश्रम का फल मिल जाएगा
अपने को कस के पकड़
तू वीर अजय कहलाएगा
अपनी साहस को मत जकड़।। #safar
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Devansh Sharma

सर सर, फर फर उफान भरे
वह सुबह शाम ,गर्मी से लड़े
कभी एक पर चल
चू चू वह करें
जहां दबा चार
खर्राटे भरे
नट ढिला था
रंग पीला था
कद काठी में भी
झबरीला था
तुम जहां उसे अब
टेबल पंखा  कहो
मेरी गर्मियों का
वह एक नगीना था
एसी में वह अब बात कहां
जो मेरे उस पंखे में थी
जहा उसकी वह आवाज़ धमक
अब इनकी कहां आवाज रही
वह आवाज नहीं लोरी थी
हर घर की वह एक तिजोरी थी
जिसकी आवाज के नीचे
सबकी कहानी बिलोरी थी
पर अब इन शांति एसी ने
हर दरवाजे को भेड दिया
जो गलती से भी किवाढ खुला
गालियों ने उसे जखेड दिया
इससे अच्छा मेरा पंखा था
बेशक ना इतना ठंडा करा
पर चौखट पर खड़े मेहमान को भी
अपनी रितु से मधुमेड किया।। #मेरापंखा
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Devansh Sharma

सुबक सुबक कर उठ पड़ा 
जब नहीं मिला फिर से बिछोना
छटा दिन बारी से था
जब चाटा खाली दौना।।
हे ईश्वर मेरी गलती बता
मैं हूं क्यों इतना अनोखा
पहले बचपन में मैया ली
और अब व्यंजन भी रोका।।
ईश्वर बोले मेरे लल्ला
इतनी जल्दी क्यों हार गया
कड़ कड़ की ठोकर खाता जो
जीवन का सार उसने ही चखा।।
तू बुद्धि जगा अपने को उठा
चंदन की माफिक खुशबू फैला
छोटी-छोटी बूंदों की तरज
अपने अंदर उफान जगा।।
तूफानों को चीरते
अपने को तू ओले सा बना
पहले तो उस पत्थर से डरे
फिर पानी माफिक बहके दिखा।।
तू कर्मठ है तू ज्ञानी है
सर्वगुण संपन्न अभिमानी है
अपने अंदर की ज्वाला से
बन सकता नया अंबानी है।।
प्रिया वत्स जरा उठ के देख
चौंधियां ने में आंखें सेख
वनवास के बाद ही
प्रभु राम को अपना राज मिला।। #Newhope

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