फिर लूट गयी हैं एक अस्मिता फिर मोमबत्तियों में लौ आ गयी फिर किसी का सब उजड़ गया हैं फिर एक बार क्रांति आ गयी हैं... किससे इसका जवाबतलब करूँ किससे इसको बेहद गलत कहूँ सब एक से,सबकी एक सी सोच हैं किसको अपनी ये शिकायत दर्ज करूँ... मौन कब तक रहेगा हृदय की पीड़ा हर रोज तो क़ानून बनते,बदलते हैं तुम कैसे जानोंगे इज्ज़त कैसे जलते हैं तुम्हारी औलादें तो सुरक्षा में चलते हैं... अखबारों,समाचारों पर तो हँसी आती हैं उनके लिये नशा ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती हैं सुनो! हमें-तुम्हें ही अब कुछ करना होंगा कानून भूल कर अब दरिंदों से लड़ना होगा!! एक प्रश्नचिन्ह आपके, हमारे और इस समाज के ऊपर... आखिर कब तक? #niteshmishra -©'नितेश मिश्रा'