"मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है" घर जाता हूं तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाती है, मेहमान हूं अब ये पल-पल मुझे बताता है || मां कहती है सामान बैग में फौरन डालो , हर बार तुम्हारा कुछ न कुछ छूट जाता है || घर पहुंचने से पहले लौटने का टिकट ,परिंदे सा उड़ता जाता है|| उंगलियों पर लेकर जाता हूं गिनती के दिन, फिसलते हुए जाने का दिन पास आ जाता || अब कब होगा आना , सबका पूछना ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है|| घर के दरवाजे से निकलने तक बैग में कुछ-न-कुछ भरते जाता हूं, जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी घर के कमरे की चप्पे-चप्पे में बसता था मैं, अब लाइट्स , फैन के स्विच भूल डगमगाता हूं || पास पड़ोस जहां था बच्चा भी वाकिफ, बड़े-बुजुर्ग बेटा कब आया पूछने चले आते हैं | कब तक रहोगे पूछकर अनजाने में वो घाँव एक और गहरा कर जाते हैं|| ट्रेन/बस में मां के हाथों की बनी रोटियां , रोती हुई आंखों में धुंधला जाता है | लौटते वक्त वजनी हुआ बैग , सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है|| तू एक मेहमान है, अब ये पल मुझे बताता है|| मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है || #AV #घर_की_याद #home 🏡 #Family 👪 #Zindgi @AV ✔ ♈