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देखा जो परिंदों को, तो याद आ गया, वो शाम का ढलना,

देखा जो परिंदों को, तो याद आ गया,
वो शाम का ढलना, वो लौट के घर जाना ! - 1

आईना भी नज़र से गिरा देगा 'अल्फ़ाज़',
कभी अपनी नज़र से गिर कर के देखिये ! - 2

रोये हम इस क़दर कि आँसू भी न बचे जब,
अपने लहू को अश्क़ बना करके रो लिए ! - 3

शम्मा को तो जलना है, पतंगे से उसे क्या,
अपनी ही ज़िद में पतंगे  ख़ुद को जला लेते हैं ! - 4

बदलती सूरतें देखीं, बदलती सीरतें देखीं,
यक़ीन करता हूँ अब भी मैं, कहाँ बदला मेरा मन है ! - 5


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर , प्रोपर औरंगाबाद बिहार देखा जो परिंदों को, तो याद आ गया,
वो शाम का ढलना, वो लौट के घर जाना ! - 1

आईना भी नज़र से गिरा देगा 'अल्फ़ाज़',
कभी अपनी नज़र से गिर कर के देखिये ! - 2

रोये हम इस क़दर कि आँसू भी न बचे जब,
अपने लहू को अश्क़ बना करके रो लिए ! - 3
देखा जो परिंदों को, तो याद आ गया,
वो शाम का ढलना, वो लौट के घर जाना ! - 1

आईना भी नज़र से गिरा देगा 'अल्फ़ाज़',
कभी अपनी नज़र से गिर कर के देखिये ! - 2

रोये हम इस क़दर कि आँसू भी न बचे जब,
अपने लहू को अश्क़ बना करके रो लिए ! - 3

शम्मा को तो जलना है, पतंगे से उसे क्या,
अपनी ही ज़िद में पतंगे  ख़ुद को जला लेते हैं ! - 4

बदलती सूरतें देखीं, बदलती सीरतें देखीं,
यक़ीन करता हूँ अब भी मैं, कहाँ बदला मेरा मन है ! - 5


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर , प्रोपर औरंगाबाद बिहार देखा जो परिंदों को, तो याद आ गया,
वो शाम का ढलना, वो लौट के घर जाना ! - 1

आईना भी नज़र से गिरा देगा 'अल्फ़ाज़',
कभी अपनी नज़र से गिर कर के देखिये ! - 2

रोये हम इस क़दर कि आँसू भी न बचे जब,
अपने लहू को अश्क़ बना करके रो लिए ! - 3