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Anjali Raj

शब्द नहीं बस शब्द, हैं रिश्तों का जोड़ ये।
कोई जोड़ें कील से, तो कोई गोंद से।

 #अंजलिउवाच #शब्द #जोड़ #कील #गोंद #रिश्ते #YQdidi

Ali Writes

#कील #लोग #अफ़सोस Chandni Khatoon Pallavi Srivastava Namrata Tripathi kanishka Khushi Sankhla

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अफ़सोस लोग टेढ़ी कील को ठोक नहीं पाते

©अली_Writes #कील #लोग #अफ़सोस  Chandni Khatoon Pallavi Srivastava  Namrata Tripathi kanishka Khushi Sankhla

जयश्री_RAM

#कील

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कल शाम को छोटी सी मरम्मत के दौरान कई कीलें हथौड़ी की मार से टेड़ी हो गयीं.बामुश्किल तीन कीलों का ही उपयोग हुआ।
टेढ़ी कीलों का क्या किया जाये
फैका जाये
या सीधा कर के रखा जाये?
कुछ देर सोचने के उन सभी को सीधा करने का प्रयास शुरू हुआ।
बार बार कील छिटक जा रहीं थी।
कसकर पकड़ने से अंगूठे और पड़ोसन उँगली में निशान तक पड़ गये...
ठोकने से कील पर गरमाहट भी बढ़ती जा रही थी...
अचानक कील का उंगलियों से छिटक कर दूर उछल जाना...
परन्तु तब तक हथौड़ी ने अंगूठे को नाखून की साईड पर चोट पहुँचा ही दी...
ये पीड़ा अनायास और तीव्रतम थी
जिससे एक अध्याय जुड़ गया कि टेढ़ी कील जैसे लोगों को ठोक पीट कर सही करने की जरूरत नहीं है...उनके हाल पर छोड़ना सही ही है
अन्यथा
स्वयं के मनोभाव और अन्तर्मन ही चोटिल होते हैं....
वैसे भी कीलों के ढेर से सभी सीधी वाली कीलें ही उठाते हैं
और
टेढ़ी कीलों को उस पल
काम के समय
नजरअंदाज कर दिया जाता है।
राम उनिज मौर्य

©RAAM UNIJ MAURYA #कील

जयश्री_RAM

#कील जैसे लोग

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क्या लिखूँ कल शाम को छोटी सी मरम्मत के दौरान कई कीलें हथौड़ी की मार से टेड़ी हो गयीं.बामुश्किल तीन कीलों का ही उपयोग हुआ।
टेढ़ी कीलों का क्या किया जाये
फैका जाये
या सीधा कर के रखा जाये?
कुछ देर सोचने के उन सभी को सीधा करने का प्रयास शुरू हुआ।
बार बार कील छिटक जा रहीं थी।
कसकर पकड़ने से अंगूठे और पड़ोसन उँगली में निशान तक पड़ गये...
ठोकने से कील पर गरमाहट भी बढ़ती जा रही थी...
अचानक कील का उंगलियों से छिटक कर दूर उछल जाना...
परन्तु तब तक हथौड़ी ने अंगूठे को नाखून की साईड पर चोट पहुँचा ही दी...
ये पीड़ा अनायास और तीव्रतम थी
जिससे एक अध्याय जुड़ गया कि टेढ़ी कील जैसे लोगों को ठोक पीट कर सही करने की जरूरत नहीं है...उनके हाल पर छोड़ना सही ही है
अन्यथा
स्वयं के मनोभाव और अन्तर्मन ही चोटिल होते हैं....
वैसे भी कीलों के ढेर से सभी सीधी वाली कीलें ही उठाते हैं
और
टेढ़ी कीलों को उस पल
काम के समय
नजरअंदाज कर दिया जाता है।
राम उनिज मौर्य

©RAAM UNIJ MAURYA #कील जैसे लोग

Brajesh Kumar Bebak

Vijendra Bajiya

एक कहानी अपनी सी बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया .. इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ... जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....

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 एक कहानी अपनी सी 

 बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..

इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया 
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...

जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....

SAUMYA MAURYA

कवितानोजोटोमेरीकलमहिंदीशायरी

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बिखरे बाल बिखरे वाल तेरी घनेरी शाम लगता है ।
आखों में काजल काले घटा समान लगता है 
तेरी नाक की कील का वो छोटा सा नग तेरे चेहरे पर 
आसमान में जैसे चंदनी रात में चाँद सा लगता है।
तेरी ओठो की लाली जैसे कमल की पंखुड़िया समान लगता है।
घायल करती है ये सब तेरी 
उपमाएं ।
बता मैं क्या करूँ तेरी तारीफ ?
जब तुझे खुदा ने इतना खूबसूरत बनाया है 
हाय रे ये बिखरे बाल,ये काजल,वो नाक की कील का नग,
होठो की लाली । #कविता#नोजोटो#मेरीकलम#हिंदी#शायरी

Madan Pal

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बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...
मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...
इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..
जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था ..
और मुझे जाना ही था घर छोड़कर ...
जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा था .....
जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी .....
मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये ....
मैंने पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी, लिखा था..
लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?
दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे का लिखा था
उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना ......
ओह....अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!
माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."
मैं अब समझा कितने चलेंगे
......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और भागा........
अब पांवो में वो कील नही चुभ रही थी ....
मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....
मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
पापा वहीँ थे ...............
मैंने उनको गले से लगा लिया, और आंसुओ से उनका कन्धा भिगो दिया ..
.....नहीं...पापा नहीं........ मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल...
बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बड़ा आदमी बनना है..
वो भी आपके तरीके से ...।।
"माँ" एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है...
और
"पापा" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है....
.
Always Love Your Parents💕
https://bit.ly/dpstatus

Chandan Kumar

Please पूरा पढ़े... बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया .. इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ... जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है ..... आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ... मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....

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Please पूरा पढ़े... 

बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..
इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया 
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...
मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....

Prakashvaani پرکاشوانی

शीर्षक- तुम्हारा मिलना.. तुम्हारा मिलना मेरी कोशिशों और साजिशों का एक तालमेल था जिसे तुम आज भी महज एक इत्तेफ़ाक़ समझती हो उन दिनों में की गई हर बचकानी और जिम्मेदार हरकत तुम्हारी याद में ठहर जाने का एक पहल था जिसे तुम आज भी महज एक इत्तेफ़ाक़ समझती हो..

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शीर्षक- तुम्हारा मिलना..
तुम्हारा मिलना
मेरी कोशिशों और साजिशों का एक तालमेल था
जिसे तुम आज भी महज एक इत्तेफ़ाक़ समझती हो
उन दिनों में की गई हर बचकानी और जिम्मेदार हरकत
तुम्हारी याद में ठहर जाने का एक पहल था
जिसे तुम आज भी महज एक इत्तेफ़ाक़ समझती हो..
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