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vishnu prabhakar singh

#आवृत

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'जागो ग्राहक जागो'
(आवृत्त)

परिप्रेक्ष्य भाग्य का निर्जीव पड़ा है
अति से निर्धारित,समग्रता अजीव खड़ा है
सम्वर्धन भाग्य-कोष का अलौकिक भरा है
लौकिकता से परे यह अभौतिक घड़ा है
हार या जीत से अनुप्राणित मौकापरस्त बड़ा है
आवृत्त भाग्य में चैतन्य पूर्ण मरा है
भाग्य में अन्तर्भेद नही कोई जड़ा है
मानव का उद्र्ग्रीव योग्यता से विच्छिन कभी नही मन हरा है ।

विप्रणु
✒️ #आवृत

vishnu prabhakar singh

#आवृत

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'जागो ग्राहक जागो'
(आवृत्त)

परिप्रेक्ष्य भाग्य का निर्जीव पड़ा है
अति से निर्धारित,समग्रता अजीव खड़ा है
सम्वर्धन भाग्य-कोष का अलौकिक भरा है
लौकिकता से परे यह अभौतिक घड़ा है
हार या जीत से अनुप्राणित मौकापरस्त बड़ा है
आवृत्त भाग्य में चैतन्य पूर्ण मरा है
भाग्य में अन्तर्भेद नही कोई जड़ा है
मानव का उद्र्ग्रीव योग्यता से विच्छिन कभी नही मन हरा है ।

विप्रणु
✒️ #आवृत

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।। 'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा। 'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।

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|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा।
'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।

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