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Sushant Mishra

#जिंदगी जीने के 6 तरीके 1)-जब अकेले हो तो #विचारों पर #कंट्रोल रखें 2)-जब #दोस्तों में हो तो जीभ कंट्रोल रखो 3)-जब गुस्से में हो तो #फैसलों पर कंट्रोल रखो 4)-जब #ग्रुप में बैठे हो तो #व्यवहार पर ध्यान दो 5)-जब कोई #तारीफ करे तो घमंड कंट्रोल में रखो 6)-जब कोई आपके बारे में गलत कहे तो इमोशनल को कंट्रोल में रखो

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जिंदगी जीने के 6 तरीके
1)-जब अकेले हो तो विचारों पर कंट्रोल रखें
2)-जब दोस्तों में हो तो जीभ कंट्रोल रखो
3)-जब गुस्से में हो तो फैसलों पर कंट्रोल रखो
4)-जब ग्रुप में बैठे हो तो  व्यवहार पर ध्यान दो
5)-जब कोई तारीफ करे तो घमंड कंट्रोल में रखो
6)-जब कोई आपके बारे में गलत कहे तो इमोशनल को कंट्रोल में रखो #जिंदगी जीने के 6 तरीके
1)-जब अकेले हो तो #विचारों पर #कंट्रोल रखें
2)-जब #दोस्तों में हो तो जीभ कंट्रोल रखो
3)-जब गुस्से में हो तो #फैसलों पर कंट्रोल रखो
4)-जब #ग्रुप में बैठे हो तो  #व्यवहार पर ध्यान दो
5)-जब कोई #तारीफ करे तो घमंड कंट्रोल में रखो
6)-जब कोई आपके बारे में गलत कहे तो इमोशनल को कंट्रोल में रखो

Anamika

#yqbaba #yqdidi #yqquotes #फैसलों #फ़ासले #oneliner #YourQuoteAndMine Collaborating with Richa Collaborating with Tulika Prasad

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 मतभेद बढ़े,
    फिर अनसुलझे फासले हुये #yqbaba #yqdidi #yqquotes #फैसलों #फ़ासले #oneliner  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Richa 
Collaborating with Tulika Prasad

RAHUL SINGH

इन फासलों के पीछे,,,,,!!
सारे फैसले तुम्हारे थे,,,,!!
   ना मैं तुम्हारा था,,,,,!!
   ना तुम हमारे थे,,,,,!!

                    


                       #राहुल_चौहान RrrKccC@👫
इन #फैसलों के #पीछे__
#सारे #फैसले #तुम्हारे थे__
   #ना #मैं #तुम्हारा था__
   ना #तुम #हमारे थे__

Lalit pandey

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#मोहब्बत...ज़िन्दगी के #फैसलों से लड़ नहीं सकती...!!

किसी को #खोना पड़ता है किसी का #होना पड़ता है...!!

ललित पाण्डेय

आलोक कुमार

"इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"

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आखिरी फैसला मित्रों....बस यूँ ही चलते-चलते 
अपने देश में विभिन्न सरकारों द्वारा किसी सन्दर्भित विषय पर लिए गए फैसलों में से  किन फैसलों को आप चिरस्थायी काल तक विद्यमान रहने एवं सभी भारतवासियों द्वारा  स्वीकार्य फैसला मानते हैं और जिसे "आख़िरी फ़ैसला" की संज्ञा देने की बात मन में दौड़ाने की कल्पना कर सकें. शायद ऐसा कोई फैसला दूर-दूर तक अब तक नजर आया ही नहीं. तो फिर आख़िरी फ़ैसला का तो जिक्र करना बेवकूफ़ी और मूर्खतापूर्ण भरी ही परिपाटी होगी. तो फिर "आख़िरी फ़ैसला" का प्रारुप, आलेख एवं श्रोत का माध्यम किसे बनाना उचित होगा. जैसा कि अब तक संविधान रूपी मानव के  दिशानिर्देशों एवं प्रावधानों के आधार पर "आख़िरी फ़ैसला" दिया जाता रहा है, जो कि एक-दूसरे के लिए वर्ग के आधार पर खुद में ही अलग-थलग हुआ है. अब सत्तर साल गुज़र चुके हैं, जो कि वर्तमानकालीन वातावरण के अनुसार मानवों के औसत उम्र 60 वर्ष से 10 वर्ष ज्यादा भी हैं. इसलिए अब नए वातावरण के अनुसार संविधान रूपी मानव की पदस्थापना करना अत्यावश्यक होना भी लाज़िमी हो गयी है. मेरा मानना है कि यह इक्कीसवी शताब्दी की पहली "आख़िरी फ़ैसला" बन जाएगी.
सधन्यवाद............... "इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"

Anant

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मुझको चाहनेवाले, तुम्हारे बन्द खाँचों में, नहीं रह पाऊंगा ।
मुझको मांगनेवाले, जितना बाँधना चाहोगे, मैं उड़ जाऊंगा ।
सोचो तो, तुम्हारी सोच के हर दायरे से दूर हूँ 
चाहो तो, तुम्हारे दिल की हर धड़कन में, मैं मिल जाऊंगा ।
मुहब्बत होगी तुम्हें, मेरे वजूद से, ये मानता हूँ 
मेरी नामौजूदगी में भी, इश्क़ सिर्फ मुझसे ही हो, तो मैं मिल जाऊंगा ।
नहीं है कोई भी बन्धन तुम्हारे फैसलों में
होगा ज़रूरी तो, तुम्हारे फैसलों में, मैं कहीं दिख जाऊंगा ।
जिसने पा लिया मुझको , मुझे वो खो नहीं सकता 
बीते वक़्त के यादों के पन्नों में, कहीं पे मैं लिखा मिल जाऊंगा ।
मुझको चाहनेवाले , तुम्हारे बन्द खाँचों में, नहीं रह पाऊंगा ।

~अनंत

Ritika Roy

लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह करती थी मैं, बेफिजूल ही वक्त जाया करती थी मैं, मगर अब इन चिंताओं में कैद नहीं हूं मैं, हां अब फिर से आज़ाद खड़ी हूं मैं! खुद को औरों की नज़र से तोलना बंद किया है, दूसरों के काबिल बनाने के बजाय पहले खुद को खुद के काबिल बनाया है, अब अपने आबरू को ऊंचा रखती हूं मैं,

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अब इंकार है मुझे हर उस जज़्बात से,
जो मेरे ज़मीर को मुझसे दूर ले जाए,
अब अपने फैसलों पर अटल खड़ी हूं मैं,
हां अब फिर से आज़ाद खड़ी हूं मैं!

अब मोहताज नहीं मैं किसी और के फैसलों की,  
आईना दिखाता मुझे मेरा खुद का फहम है,
अब किसी की इजाज़त से परे हूं मैं, 
हां अब फिर से आज़ाद खड़ी हूं मैं! लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह करती थी मैं, 
बेफिजूल  ही वक्त जाया करती थी मैं, 
मगर अब इन चिंताओं में कैद नहीं हूं मैं,
हां अब फिर से आज़ाद खड़ी हूं मैं!

खुद को औरों की नज़र से तोलना बंद किया है,
दूसरों के काबिल बनाने के बजाय पहले खुद को खुद के काबिल बनाया है,
अब अपने आबरू को ऊंचा रखती हूं मैं,

शिवम ओरछाधाम

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*एक सच ...*
*तज़ुर्बा ग़लत फैसलों से बचाता है...*

*उससे भी बड़ा सच है...*
*तज़ुर्बा गलत फैसलों से ही आता है...*

-शिवम ओरछा #NojotoQuote

Shruti Aggarwal

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एक सच ....
तज़ुर्बा ग़लत फैसलों से बचाता है,
उससे भी बड़ा सच है...
तज़ुर्बा गलत फैसलों से ही आता है।

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