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अदनासा-
स्वतंत्रता पूर्व बोल नही पाते थे, केवल सुनो क्योंकि दास थे हम, परंतु स्वतंत्रता काल के पश्चात, आज के वर्तमान अमृत काल तक, इतना बोले कि बोलने की क्षमता तीक्ष्ण हो गई, परंतु दुखद यह की सुनने की क्षमता क्षीण हो गई। Soon raha hai Binod ? ©अदनासा- #हिंदी #स्वतंत्रता #दास #अमृत #तीक्ष्ण #क्षीण #binod #Instagram #Facebook #अदनासा
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read moreKUNAL MAHESHWARI
-मैं चलता रहा सांस लेके❤ आंखों में तेरी आस लेके, मैं चलता रहा सांस लेके क्षीण से जीवन को अमर करके तुम पर जा चुकी थी अब सफर करके तुम मैं मौजूद रहा उस वजह पर जहां खो चुकी थी प्यार दफन करके तुम उस कफन को साथ लेके, मैं चलता रहा सांस लेके जो ऋचाएँ हमने तुमने जोड़ी थी स्वर्ण कविता मैंने तुमपे बोली थी काले घेरे बादल बनकर ख्वाबों में छा गए जब तुम्हारी याद फिर से मैंने खोली थी उन यादों की मुलाकात लेके, मैं चलता रहा सांस लेके तुम्हारा शुद्ध प्रतिमान प्राय मुझ में झलकता था सावन आता जब कोई हमारे लिए संवरता था प्रणय को भीष्म फिक्र होती मेरी जब आंखों में मुग्ध बादल गर्जता था उन बादलों को शांत लेके, मैं चलता रहा सांस लेके ~कुनाल माहेश्वरी🙏 #breath #together #love #memory #lie #pyar ❤😍
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 6 – पूर्णकाम ‘तृष्णाक्षये स्वर्गपदं किमस्ति' 'देवाधिप की मुखश्री आज म्लान दीखती है!' सुरगुरु ने अमरों की अर्चा स्वीकार कर ली थी और महेन्द्र से अभिवादित होकर वे सिंहासन पर बैठ चुके थे। इन्द्र एवं अन्य देवताओं ने भी आसन ग्रहण कर लिया था। 'सुधर्मा सभा में आज चिन्ता की अरुचिकर गन्ध है।'
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