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Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
read moreDharmendra Azad
धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद" के गज़ल संग्रह " उनकी यादों के उजाले " की प्रतियाँ अब उपलब्ध हैं। एक प्रति का मूल्य 100 रुपये है, और डाक व्यय 20 रुपये अतिरिक्त। एक से अधिक प्रतियाँ खरीदने पर डाक व्यय नहीं देना होगा। गज़ल संग्रह के इच्छुक पाठक निम्न खाते में राशि जमा करने के बाद वॉट्सएप्प नं 9425469326 पर सूचित करें- धर्मेन्द्र तिजोरीवाले खाता नंबर- 30933476963 IFSC कोड - SBIN0012171 राशि जमा करने के बाद वॉट्सएप्प पर अनिवार्य रूप से सूचित करें ।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 9 - भोले भगवान हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 14 - सात्विकी श्रद्धा 'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार' 'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था। 'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उस
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 12 - तामसी श्रद्धा 'आपको वह मानता है। आप उसे समझा दीजिये।' वे मेरे सम्मान्य हैं, पढे-लिखे हैं, समझदार है। उनके चरित्र पर कभी किसी ने कोई शंका नहीं की है और सत्संग में उनकी रुचि है। वे मेरे पास अपने पुत्र की बात लेकर आये थे - 'वह किसी ओर की बात नहीं सुनता।' 'बात क्या है?' उनके पुत्र सुशील हैं, पितृभक्त हैं। उनके जैसे सच्चरित्र व्यक्ति मिलना कठिन है। वे कोई अयोग्य हठ करेंगे, यह बात सोचना भी कठिन था मेरे लिए।
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
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