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Best स्वछंद Shayari, Status, Quotes, Stories

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शब्दिता

अनुशासन वही है जब आपका विवेक आप पर शासन करे।
किंतु किसी अन्य की बुद्धि के अनुसार आप अनुसरण करेंगे तो आप के ऊपर अनुशासन तो आरंभ में कुछ क्षण तक ही होगा उसके पश्चात वह व्यक्ति आप पर शासन करेगा।
तो आपका विवेक आप पर शासन करे वही अनुशासन है‌। #शासन 
#अनुशासन
#स्वतंत्र
#स्वछंद

Saumitra Joshi

लहरेन मी बहरेन मी..?

©Saumitra Joshi #स्वछंद

Sudha Bhardwaj

#स्वछंद हँसी

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स्वछन्द हँसी सम्पदा की मोहताज नही।
यूँही छोटी सी बात पर फूट पडती है कभी।

सुधा भारद्वाज"निराकृति" #स्वछंद हँसी

रजनीश "स्वच्छंद"

"स्वच्छंद" दोहे 2 ओढ़ लिबास स्वार्थ का जीवन क्षीण कराय। दीमक जड़ में जो लगे दे तरुविशाल गिराय।। अहं गरल अमृत समझ बस पीता ही जाय, शीतनिष्क्रिय बने रहे जीवन बीता ही जाय।

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"स्वच्छंद" दोहे 2

ओढ़ लिबास स्वार्थ का जीवन क्षीण कराय।
दीमक जड़ में जो लगे दे तरुविशाल गिराय।।

अहं गरल अमृत समझ बस पीता ही जाय,
शीतनिष्क्रिय बने रहे जीवन बीता ही जाय।

चक्की तो घुमत जात है गेंहू घुन पिसाय।
राजा रंक एक गति दियो स्वछंद बताय।

रोली औ चन्दन माथ मले वस्त्र पीत पहनाए।
पाप पुण्य का ज्ञान नहीं निज को ईश बताए।

सीखन को खुला विचार रहे मन निश्छल कर पाए,
ज्ञानकुण्ड जो मूढ़ उतरा अंधेरा बस घूप वो पाए।

कभी सघन तो कभी विरल जल भी रूप बनाये,
एकसम है समय नहीं जो बदले वो अमृत पाये।

कथनी करनी में भेद करी जीवन दीयो बिताय,
लिए शंख अस्त्रबिन बिन हार है कौन उपाय।

©रजनीश "स्वछंद" "स्वच्छंद" दोहे 2

ओढ़ लिबास स्वार्थ का जीवन क्षीण कराय।
दीमक जड़ में जो लगे दे तरुविशाल गिराय।।

अहं गरल अमृत समझ बस पीता ही जाय,
शीतनिष्क्रिय बने रहे जीवन बीता ही जाय।

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं ज्ञान-सार हूँ।। मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ, अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ। मैं समय की हूँ गति, पुरुषार्थ की मैं हूँ मति। मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,

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मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं सत्य का स्तम्भ हूँ।
माथे मुकुट मोती जड़ित,
मैं हूँ प्रत्यंचा एक तनित।
मैं हूँ धरा अम्बर भी मैं,
एकाकी हूँ मैं अंतर भी मैं।
संशय रहित, कभी द्वन्द्व हूँ,
श्लोक मन्त्र और छंद हूँ।
रावण कभी हूँ मैं प्रपंचित,
ज्ञान संचित ज्ञान वंचित।
यज्ञ हूँ मैं अश्वमेधी,
मैँ बली पूजा की बेदी।
मैं प्यास और मैं ही क्षुधा,
मैं ही गरल मैं ही सुधा।
मथ के सागर मैं हूँ निकला,
अमृत हूँ मैं विष मैं हूँ पिघला।
भाव उदित मैं काव्य जनित,
शत्रु सखा मैं हूँ अमित।
मैं कालजयी नश्वर भी मैं,
दानव भी मैं ईश्वर भी मैं।
मैं परम् और मैं हूँ खण्डित,
मैं स्वछंद और मैं ही बन्दित।
युधिष्ठिर मुख का सत्य भी,
मैं ही स्वीकार्य और त्यक्त भी।
जिह्वा-ध्वनित वाणी भी मैं,
दान-रहित पाणी भी मैं।
कर्ण भी मैं मैं कुंती हूँ,
कभी सार्थक किंवदन्ति हूँ।
स्तोत्र जटिल तुलसी सरल,
पाषाण वज्र जल सा तरल।
आदि अनन्त मैं रोध हूँ,
स्नेह मैं और क्रोध हूँ।
दुर्बुद्धि भी कभी बोध हूँ,
मानवजनित कभी शोध हूँ।
यम भी मैँ और तम भी मैं,
खुशियों की लड़ी मातम भी मैं।
मैं हक हूँ और हुंकार हूँ,
आर्तनाद और पुकार हूँ।
आजन्मा और मैं अमर्त्य हूँ,
मैं ही परम एक सत्य हूँ।
मैं जीत की हूँ गर्जना,
मैं शंखनाद हूँ अर्चना।
मैं तो ज्वलित अंगार हूँ,
मैं जीव-मृत्यु हार हूँ।
व्याधी भी मैं उपचार हूँ,
मैं ही तो जीवन सार हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,

Saniya Mujawar

आयुष्य जगावं कसं?

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#DearZindagi आयुष्य जगावं कस? 
स्वछंद फुलपाखरासारखं. 
हसून फुलांवर बागडावं. 
नेहमीच का कुडावं. 
स्वछंद उडावे आभाळात 
इंद्रधनूच्या रंगांना घेऊनि साथ. 
बदलणाऱ्या ऋतूंचा घ्या तूम्ही आस्वाद. 
उंच घ्या भरारी... 
बंधनाचे तोडून पाश. 
निसर्गाची घेऊन साथ. 
आनंद करा आत्मसात. 
आयुष्य जगावं असं. !!
स्वछंद फुलपाखरासारखं ;
हसून फुलांवर बागडावं.. 
नेहमीचं का कुडावं?... आयुष्य जगावं कसं?

रजनीश "स्वच्छंद"

तरंग चाहिए।। इस ठहरे हुए पानी मे तरंग चाहिए। बेरस इस ज़िन्दगी में रंग चाहिए। जो बैठे हैं थक हार निराश यहां, उनको भी एक नई उमंग चाहिए।

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तरंग चाहिए।।

इस ठहरे हुए पानी मे तरंग चाहिए।
बेरस इस ज़िन्दगी में रंग चाहिए।

जो बैठे हैं थक हार निराश यहां,
उनको भी एक नई उमंग चाहिए।

कब तलक यूँ ही घिंसेंगीं चप्पलें,
बदला हुआ जीने का ढंग चाहिए।

क्या वजूद, क्या करेंगे अदा हम,
अब इनायत-ए-रब बैरंग चाहिए।

सुबह से शाम होता सफर तन्हा,
किसी हमसफ़र का संग चाहिए।

इल्ज़ाम वो भी देते हम भी,
तन्हाई की तन्हाई से जंग चाहिए।

ऐ स्वछंद क्यूँ बने हो मोहरा,
बनो वज़ीर नया शतरंज चाहिए।

©रजनीश "स्वछंद" तरंग चाहिए।।

इस ठहरे हुए पानी मे तरंग चाहिए।
बेरस इस ज़िन्दगी में रंग चाहिए।

जो बैठे हैं थक हार निराश यहां,
उनको भी एक नई उमंग चाहिए।

रजनीश "स्वच्छंद"

ज़िन्दगी के खेल।। जब ज़िन्दगी खेलती है खेल बचपन के, फिर कुछ यूं चलें कारवां दर्द-ए-चमन के। छुपन-छुपाई और फिर एक धप्पा उसपर, अब हर धप्पे पे होते खाक परिंदे लगन के।

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ज़िन्दगी के खेल।।

जब ज़िन्दगी खेलती है खेल बचपन के,
फिर कुछ यूं चलें कारवां दर्द-ए-चमन के।

छुपन-छुपाई और फिर एक धप्पा उसपर,
अब हर धप्पे पे होते खाक परिंदे लगन के।

हाय कबड्डी, मिट्टी सना, सांस रोके भागना,
अब मन कालिख सना श्वेत कपड़े बदन के।

राजा मंत्री चोर सिपाही, पर्चे में खुशी अपनी,
अब ज़िन्दगी हुई पर्चा और दिन उलझन के।

वो कंचे की गोलियां, जेब से आती खनक,
अब ढूंढते हैं सच छुप पीछे किसी दर्पण के।

हर दिन थी होली, ईद और दीवाली अपनी,
अब हुए ग़ुलाम दिन, मुहूरत और सगन के।

हो तितली उड़ते थे स्वछंद पाने को जहां सारा,
अब लगे मानो हुए टूटे सितारे उसी गगन के।

बो भी आते थे गुठलियां आम की बगीचे में,
अब चुभने लगे हैं कांटे दर्द बन उसी चमन के।

क्या मज़हब क्या दुनिया अपना पराया कौन,
अब फिरते हो मुरीद इस दुनिया के चलन के।

जो मांगे है मिलती भीख नहीं, कैसे मांगूं में,
कोई लौटा दे ऐ "स्वछंद" बीते दिन बचपन के।

©रजनीश "स्वछंद" ज़िन्दगी के खेल।।

जब ज़िन्दगी खेलती है खेल बचपन के,
फिर कुछ यूं चलें कारवां दर्द-ए-चमन के।

छुपन-छुपाई और फिर एक धप्पा उसपर,
अब हर धप्पे पे होते खाक परिंदे लगन के।

रजनीश "स्वच्छंद"

खुद को उबार आएंगे।।। चलो, चांद से चांदनी उधार ले आएंगे, बिगड़े जो रिश्ते उसे सुधार के आएंगे। मयस्सर नही कि मिले ज़िन्दगी दुबारा, बीते पलों को चलो पुकार के आएंगे।

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खुद को उबार आएंगे।।।

चलो, चांद से चांदनी उधार ले आएंगे,
बिगड़े जो रिश्ते उसे सुधार के आएंगे।

मयस्सर नही कि मिले ज़िन्दगी दुबारा,
बीते पलों को चलो पुकार के आएंगे।

थी जवानी, उसपे था आलम भी जवां,
ज़िन्दगी फिर से वो गुज़ार के आएंगे।

एक नशे में नशा दूजा हम करते नहीं,
जा मयख़ाने, ये नशा उतार के आएंगे।

मुहब्बत का गुमां जल्दी जाता नहीं,
चलो स्वछंद ख़ुद को उबार के आएंगे।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote खुद को उबार आएंगे।।।

चलो, चांद से चांदनी उधार ले आएंगे,
बिगड़े जो रिश्ते उसे सुधार के आएंगे।

मयस्सर नही कि मिले ज़िन्दगी दुबारा,
बीते पलों को चलो पुकार के आएंगे।

रजनीश "स्वच्छंद"

वेदना अंत:करण की वेदना.... तीव्र उद्वेलीत उत्छ्रीखंल मन द्रवित आँखें विचलित अंत:करण, मृग मारीचीका में उलझा मन दैविक प्रण का नीरन्तर चीर हरण। क्रोधाग्नी से संचित ज्वलंत विचार, अकम्पित अचल पगध्वनि, मृदुल स्वप्न कज्जल अश्रुधार रोष की भ्रू-भंगीमा से सजी लज्जीत जननी।

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वेदना
अंत:करण की वेदना....

तीव्र उद्वेलीत उत्छ्रीखंल मन द्रवित आँखें विचलित अंत:करण,
मृग मारीचीका में उलझा मन दैविक प्रण का नीरन्तर चीर हरण।

क्रोधाग्नी से संचित ज्वलंत विचार, अकम्पित अचल पगध्वनि,
मृदुल स्वप्न कज्जल अश्रुधार रोष की भ्रू-भंगीमा से सजी लज्जीत जननी।
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