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मेरे ख़यालात.. (Jai Pathak)
इस संसार मे माता-पिता से अधिक सच्चा स्नेह और आश्रय कोई नहीं दे सकता है। दूसरों का आश्रय लेकर जीवन मे आगे बढ़ने वाला एक न एक दिन स्वयं कि दृष्टि मे गिर जाता है क्योंकि दूसरों के आश्रय मे व्यपार अवश्य ही होता है परन्तु माता-पिता निष्कपट होते हैं। ©Jai Pathak #आश्रय
Siddharth Gautam
वृक्ष लगाएं पर्यावरण प्रदूषण के हित, आओ मिलकर वृक्ष लगाएं। भेदभाव का नाम मिटाकर, समता के स्वर ताल खिलाएं। हरे भरे ये पेड़ हमारी, धरती माँ के गहने। ये जीवन दाता दुनियां के, पेडों के क्या कहने।। जग का गरल पचा कर हमको, प्राणवायु ये देते। फूल पत्ती या फल ईंधन, देते कुछ न लेते।। ये दानी ही नहीं महादानी, बल्कल पहने रहते। नीड़ आश्रय खुशबू हैं ये, छाया भरपूर पाते।। पास इनके जो भी आया, खुशहाली ले आते। सर्दी गर्मी वर्षा हंस हस, लाते और ले जाते।। वन्य प्राणी का आश्रय है ये, वृक्षो को नहीं काटे। बात माने बुजुर्गो की, वृक्षो में दवाई छांटे।। समय चक्र कहता है भैय्या, जो सोया है उसे जगाये। गांव नगर फैले खुशहाली, सुंदर भारत देश बनाये।।
RK SHUKLA
ख़त जीवन में आश्रय वादी बनो अवसर वादी नहीं किसी को आश्रय देने से आपका व्यक्तित्व ऊंचा होगा किसी से अवसर पर प्रेम रखना आपके व्यक्तित्व को नीचे गिराएगा prk सहायता
सहायता
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 7 – अमोह 'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।' मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 1 - बद्ध कौन? 'बद्धो हि को यो विषयानुरागी' अकेला साधु, शरीरपर केवल कौपीन और हाथमें एक तूंबीका जलपात्र। गौर वर्ण, उन्नत भाल, अवस्था तरुणाई को पार करके वार्धक्यकी देहली पर खडी। जटा बढायी नहीं गयी, बनायी नहीं गयी; किन्तु बन गयी है। कुछ श्वेत-कृष्ण-कपिश वर्ण मिले-जुले केश उलझ गये हैं परस्पर।
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 7 – धर्म-धारक 'आज लगभग तेंग का पूरा परिवार ही नष्ट हो गया।' बात मनुष्यों में नही, देवताओं में चल रही थी। 'वह कृष्णवर्णा दीर्धांगी कंकालिनी लताकण्टकभूषणा चामुण्डा किसी पर कृपा करना नहीं जानती। उसने मेरी अनुनय को उपेक्षा के निष्करुण अट्टहास में उड़ा दिया। आप सब देखते ही हैं कि किस शीघ्रता से वह प्राणियों के रक्त-माँस चाटती जा रही है।' 'तुम्हारे यहाँ तो अद्भुत सुइयाँ एवं ओषधियाँ लेकर एक पूरा दल चिकित्सकों का आ गया है।' दूसरे देवता ने अधिक खिन
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1 - बद्ध कौन? 'बद्धो हि को यो विषयानुरागी' अकेला साधु, शरीरपर केवल कौपीन और हाथमें एक तूंबीका जलपात्र। गौर वर्ण, उन्नत भाल, अवस्था तरुणाई को पार करके वार्धक्यकी देहली पर खडी। जटा बढायी नहीं गयी, बनायी नहीं गयी; किन्तु बन गयी है। कुछ श्वेत-कृष्ण-कपिश वर्ण मिले-जुले केश उलझ गये हैं परस्पर। धूलिसे भरे चरण, कहीं दूरसे चलते आनेकी श्रान्ति। मुखकी घनी दाढ़ी पर भी कुछ धूलि के कण हैं। ललाटपर बडी-बडी श्वेदकी बूंदे झलमला आयी हैं। मध्याह्न होने को आया, साधुको अब विश्राम करना चाहिये।
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