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Aakash Tripathi

जीवन की सच्चाई.....!!!

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शौख से खरीदी हुई वस्तु 
आपको हमेशा सस्ती ही लगेगी........,
जबकी मजबुरी मे खरीदी हुई सस्ती वस्तु भी महेंगी लगेगी..!!!
   
                             - Aakash Tripathi जीवन की सच्चाई.....!!!

Shivam Anand

shayari

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एक लड़की ने मुझसे कहा-
तुम में क्या खूबियाँ है जो मैं तुमसे प्यार करूँ,
मैंने भी कह दिया खूबियाँ खरीदी हुई चीजों में देखी जाती है,
और प्यार को कभी खरीदी नहीं जाती।
प्यार तो वह एहसास है जो गरीबी-अमीरी सबकुछ भुलाकर बस हो जाती है।

~Shivam Anand shayari

Moh Ashraf Khan

मेरे कंधे पर सर रखकर उसे सोना भी ठीक ना लगा मेरा साथ होते हुए भी उस को मेरा साथ होना भी ठीक ना लगा खरीदी थी बड़ी मिन्नतों और मेहनत से जो रिंग मै ने

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मेरे कंधे पर सर रखकर 
उसे सोना भी ठीक ना लगा
मेरा साथ होते हुए भी
     उस को
मेरा साथ होना भी ठीक ना लगा
खरीदी थी बड़ी 
मिन्नतों और मेहनत से
  जो रिंग मै ने 
उस रिंग को अपने 
हाथ में पहने रहना 
भी उसे ठीक ना लगा  #NojotoQuote मेरे कंधे पर सर रखकर 
उसे सोना भी ठीक ना लगा
मेरा साथ होते हुए भी
     उस को
मेरा साथ होना भी ठीक ना लगा
खरीदी थी बड़ी 
मिन्नतों और मेहनत से
  जो रिंग मै ने

mamta Solnaki

sachi kaha na mene...

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शुक्र है जिंदगी बाजार में खरीदी नहीं जाती l
खरीदी जाती तो अमीरों की गुलाम बन जाती ll
अमीर फिर मौत को अपने इशारों पर नचाता l
मौत की आगोश में सिर्फ गरीब ही सो पाता ll
जिंदगी गुलाम नहीं ना कोई वश में कर पाया है l
जाना उन सभी को है ,जो इस दुनिया में आया है ll
फिर किस बात का है गुरुर, कैसा ये अहंकार है l
जिंदगी पर तुम्हारा नहीं ऊपर वाले का अधिकार है sachi kaha na mene...

Naina Arora

"वो पहली साड़ी" कभी खरीदी नहीं, ना मांगी किसी से, माँ की थी मिल गई आसानी से। बचपन से ख़्वाब देखती थी पहनने का, माँ की साड़ी में खुद को समेटने का। मौका जो मिलता था उठा लाती थी,

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"वो पहली साड़ी"

कभी खरीदी नहीं,
ना मांगी किसी से,
माँ की थी मिल गई आसानी से।
बचपन से ख़्वाब देखती थी पहनने का,
माँ की साड़ी में खुद को समेटने का।
मौका जो मिलता था उठा लाती थी,
शीशे के आगे यू खड़ी हो जाती थी,
पहननी न आती थी फिर भी 
अपने नन्हें हाथों से कोशिश में जुट जाती थी,
समझ न आती थी तो युही उसमें लिपट जाती थी।
कभी माँ डांट लगाती तो कभी प्यार से पहनाती थी,
मुझें साड़ी में देख उसकी आँखें भी झलक जाती थी।
बड़ी जब हुई तो कोई साड़ी खरीदी नहीं
वो पहली साड़ी माँ की ही पहनी थी।
"लग रही हो बिल्कुल "माँ" जैसी"
ऐसा सबने बोला था,
आँखों का तारा हो, पापा ने भी टोका था।
"सुंदर सी, प्यारी सी गुड़िया बड़ी हुई",
ये कह कर माँ ने नज़र मेरी उतारी थी।
आज भी पहन लेती हूं अलमारी से निकाल कर
पर माँ टोकती नहीं हैं, पहनने से रोकती नहीं हैं
जो होती वो तो प्यार से गले लगा लेती,
मेरी सारी बलाए भी उतार लेती।
आज भी संभाल कर रक्खी हैं वो पहली साड़ी 
और हर साड़ी माँ की
यादें बसी हैं उनमें माँ की ढेर सारी।।
-Naina Arora "वो पहली साड़ी"

कभी खरीदी नहीं,
ना मांगी किसी से,
माँ की थी मिल गई आसानी से।
बचपन से ख़्वाब देखती थी पहनने का,
माँ की साड़ी में खुद को समेटने का।
मौका जो मिलता था उठा लाती थी,

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