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Rabindra Kumar Ram
" अच्छा खासा सा था मिजाज मेरा , जब से देखा है तुझे बिमार हो गया , ये कसुर नहीं है तेरा इसके लिए , बनाने बाले क्या गम्भीर मेंहनत की है ." --- रबिन्द्र राम " अच्छा खासा सा था मिजाज मेरा , जब से देखा है तुझे बिमार हो गया , ये कसुर नहीं है तेरा इसके लिए , बनाने बाले क्या गम्भीर मेंहनत की है ." --- रबिन्द्र राम #खासा #मिजाज
Rabindra Kumar Ram
" अच्छा खासा सा था मिजाज मेरा , जब से देखा है तुझे बिमार हो गया , ये कसुर नहीं है तेरा इसके लिए , बनाने बाले क्या गम्भीर मेंहनत की है ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " अच्छा खासा सा था मिजाज मेरा , जब से देखा है तुझे बिमार हो गया , ये कसुर नहीं है तेरा इसके लिए , बनाने बाले क्या गम्भीर मेंहनत की है ." --- रबिन्द्र राम
" अच्छा खासा सा था मिजाज मेरा , जब से देखा है तुझे बिमार हो गया , ये कसुर नहीं है तेरा इसके लिए , बनाने बाले क्या गम्भीर मेंहनत की है ." --- रबिन्द्र राम
read moreRupesh Dewangan
यदि नही खाये होते हम, ठोकरे इस जींदगी में, तो लक्ष्य की गम्भीरता को, मै कैसे जान पाता । और यदि नही टकराये होते, कभी गलत लोगो से तो दिल के साफ लोगो को, मै कैसे पहचान पाता ।। #ठोकर #गम्भीर #लोग #पहचान ©Rupesh Dewangan #Jindagi_Ki_Sikh
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 1 - धर्मो धारयति प्रजाः आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात् पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु
read moreRakesh Kumar Dogra
मैं तो जानबूझ कर ऐसा लिखता हूं कि जिसकी भी समझ में आया गलत समझ बैठा। अब मैं आसमान से नीचे गिरा हूं मेरी इस गम्भीर मुद्रा को वो न्यूटन की gravity का सिद्धांत समझ बैठा। Gravity - गुरूत्वाकर्षण/ गम्भीर मुद्रा
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 10 - नाम का मोह 'मुझे कोई आराधना बताइये! कोई भी अनुष्ठान बता दीजिये। मैं कठिन-से-कठिन अनुष्ठान भी कर लूंगा। महेश आज एक संत के पैर पकड़कर बैठ गया था। आस-पास के लोग कहते हैं कि मुनीश्वर महाराज सिद्ध संत हैं। वे जिसे जो बात कह देते हैं, वही हो जाती है। किसी को वे सीधे तो आशीर्वाद देते नहीं, कोई पूजा कोई पाठ, कोई अनुष्ठान बता देते हैं। लेकिन जिसे वे कुछ बता देते हैं, वह ठीक-ठीक उनकी आज्ञा का पालन करे तो उसका काम हो जाता है।
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 1 - भक्ति पंचम पुरुषार्थ योगिनामपि सुर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।। (गीता 6-47)
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