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Balwant Mehta
बेखबर जो चलते है दीवारों से टकराते हैं या गड्ढे में गिर पड़ते हैं दोष औरों को देते हैं। ©Balwant Mehta , #दोष #गड्ढा #सोच #नजरिया
#Lifechanger
हमारे जिंदगी के उतार चढ़ाव और सुख दुःख उन सड़को के तरह है जहा कही गड्ढे, तो कही समतल और कही तो रूकावटे मिलती हैं,फिर भी जिंदगी चलते ही जाती हैं । ©#Lifechanger #सड़क #रास्ता #समतल #गड्ढा #जिंदगी #चलना #सफलता
ankur sahay srivastav
शहर की भीड़ अर्थव्यवस्था देश की, अपनी पकड़े तूल ।। चलो आज हम तोड़ दें,इस ट्रैफिक के रूल ।। चले बीच में बैठकर ,लिए हेलमेट हाथ । और तीसरा यार भी, पीछे चिपके साथ ।। गड्ढा गड्ढा सड़क है,पटरी पटरी धूल । पेनाल्टी से अब खिलें ,इनमें अच्छे फूल ।। #अंकुर सहाय
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 8 - सुहृदं सर्वभूतानाम् 'सावधान!' हवाईजहाज के लाउडस्पीकर से आदेश का स्वर आया। यह अंतिम सूचना थी। वह पहले से ही द्वार के सम्मुख खड़ा था और द्वार खोला जा चुका था। उसकी पीठ पर हवाई छतरी बँधी थी। रात्रि के प्रगाढ़ अंधकार में नीचे कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। केवल आकाश में दो-चार तारे कभी-कभी चमक जाते थे। मेघ हल्के थे। वर्षा की कोई सम्भावना नहीं थी। बादलों के होने से जो अंधकार बढा था, उसने आश्वासन ही दिया कि शत्रु छतरी से कूदने वाले को देख नह
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 8 - सुहृदं सर्वभूतानाम् 'सावधान!' हवाईजहाज के लाउडस्पीकर से आदेश का स्वर आया। यह अंतिम सूचना थी। वह पहले से ही द्वार के सम्मुख खड़ा था और द्वार खोला जा चुका था। उसकी पीठ पर हवाई छतरी बँधी थी। रात्रि के प्रगाढ़ अंधकार में नीचे कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। केवल आकाश में दो-चार तारे कभी-कभी चमक जाते थे। मेघ हल्के थे। वर्षा की कोई सम्भावना नहीं थी। बादलों के होने से जो अंधकार बढा था, उसने आश्वासन ही दिया कि शत्रु छतरी से कूदने वाले को देख नहीं सकेगा। हवाई जहाज बहुत ऊपर चक्कर लगा रह
read moreMukesh Poonia
Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम
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