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Mukesh Poonia
ऊंचा उठने के लिए पंखों की जरूरत तो पक्षियों को पड़ती है इंसान तो की जितना नीचे झुकता है उतना ही ऊपर जाता है . ©Mukesh Poonia #UskeSaath #ऊंचा उठने के लिए #पंखों की #जरूरत तो #पक्षियों को पड़ती है #इंसान तो की जितना नीचे #झुकता है उतना ही #ऊपर जाता है
I_surbhiladha
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read moreAnju Yadav
मैं पक्षी आसमानों की उड़ना हक है मेरा खूबसूरती में बंध जाती हूं, पिंजरा है अब घर मेरा पेड़ो पर सुंदर सा अपना आशियाना बनाती घोंसला है महल मेरा फिदरत कैसी इन इंसानों की जिसने छीना घर मेरा क्या करू फरियाद किसीसे जब रब ने ही मुझे अकेला छोड़ा मैं पक्षी आसमानों की बादलों के बीच मुझे है रहना नही शिकायत मुझे कुदरत से बस मुझे मेरा महल दे देना,उड़ान भरनी है इन आसमानों में मुझे और मेरे साथियों को बस पंख दे देना। #उड़ान#पक्षियों की आजादी#hak# घोंसला उनका महल
जीtendra
मैं वीरान एवं आत्मविलीन होना चाहता हूं। एक अलग जहां में भ्रमण करना चाहता हूं, जहां पक्षियों की चहचहाहट हो, नदियों का मधुर संगीत हो, वृक्षों की छाया हो और मैं तन्हा। जहां विचरण करने पर ये अहसास हो, मेरी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई है... 😔 ©जीtendra #जहां #भ्रमण #पक्षियों #नदी #मधुर #संगीत #वृक्ष #छाया #अहसास #आत्मा
विवेक कुमार
Ranjeet jaiswal
✳️#अधूरे ख्वाब मेरे🌙💖 शायद अब हो #कागज पर पूरे 🌳🇮🇳🇮🇳 आसमान में #उड़ने की चाहत 👁🗨 ✡ पन्नों पर लिख दी #पक्षियों की चहचहाहट☣ ✍✍✍✍✍
Prince Verma
उथल-पुथल और था हृदय शिथिल, जब बोले वो आज शाम को मिल, अहा! भावना प्रबल, मन चंचल, मधुर स्वर कल-कल, उर में हलचल। ऊषा की सुनहरी वीणा नहीं, आज सायं का वो राग सुनना है, पक्षियों के कलरव का अनुचर नही, आज भ्रमर हूं, पुष्प पराग चुनना है। मेघों को रथ बना लूं, पक्षियों को अश्व, सूर्य को नीचे खींच लूं, होता जो बस, इन दिवाकर को भी क्या आज विश्राम नहीं, मन आवेशित अधीर अभी तक शाम नहीं। संध्या है अब, थी दिशा स्तब्ध, भय पग-पग, न बोले कोई खग, जल में मछली छप-छप, इस सन्नाटे में दो जन उस सरित-किनारे, शिलावत मूक खड़े, एक-दूसरे को निहारे। आज जो गीत गाने आया था, वो गा न सका, मन की वीणा तो बजी,तारों में स्वर आ न सका, तब समय ने हमें टोक दिया, उत्तर मांगता, पर उसने आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रथम भेंट.... #hindi_diwas
प्रथम भेंट.... #hindi_diwas
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात् पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु
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