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Anamika
ला दे मुझे वो खिलौना, वहीं बिछौना बीता वक्त, चाहूं बैया डाल अब सोना #वक्त #खिलौना #बैटरी #YourQuoteAndMine Collaborating with Anuup Kamal Agrawal
#वक्त #खिलौना #बैटरी #YourQuoteAndMine Collaborating with Anuup Kamal Agrawal
read moreRaj 94myfm
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 💗💗 *प्यार क्या है*❓ *प्यार आत्मा का खुद का संस्कार या उसका स्वभाव है*। प्यार कहीं बाहर नहीं मिलता, वह तो हमारे स्वयं के अंदर है प्यार को किसी से मांगना नहीं पड़ता वह तो हमारा ही स्वभाव हैI लोग प्रायः प्यार को बाहर ढूंढते हैं, वह किसी वस्तु में या किसी इंसान में प्यार को ढूंढते हैं, जबकि प्यार ढूंढने से नहीं मिलता और न ही किसी से मांगने से मिलता हैI ❣लोग दूसरों से प्यार मांगते रहते हैं, यहां तक कि भिखारी बन जाते हैं पर प्यार मांगने की चीज़ नहीं है, प्यार तो देने की चीज़ हैI जो आत्मा च
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 💗💗 *प्यार क्या है*❓ *प्यार आत्मा का खुद का संस्कार या उसका स्वभाव है*। प्यार कहीं बाहर नहीं मिलता, वह तो हमारे स्वयं के अंदर है प्यार को किसी से मांगना नहीं पड़ता वह तो हमारा ही स्वभाव हैI लोग प्रायः प्यार को बाहर ढूंढते हैं, वह किसी वस्तु में या किसी इंसान में प्यार को ढूंढते हैं, जबकि प्यार ढूंढने से नहीं मिलता और न ही किसी से मांगने से मिलता हैI ❣लोग दूसरों से प्यार मांगते रहते हैं, यहां तक कि भिखारी बन जाते हैं पर प्यार मांगने की चीज़ नहीं है, प्यार तो देने की चीज़ हैI जो आत्मा च
read moreShilpi Singh
#ग़दर.... ** #ग़दर **...my first story written by me जी हाँ यह 2001 कि बात है जब.. “ग़दर”..फ़िल्म रिलीज़ हुई और लोग बेशब्री से इंतेज़ार कर रहे थे कि जल्दी से इसकी कैसेट बाज़ार में आजाये क्योंकि सिनेमाघरों में जाने का समय कहाँ था और पैसे भी उतने नही थे और तो और जो आनंद हमारे गाँव के पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर देखने से मिलती वो सिनेमाघरों में कहाँ ?..आख़िर फ़िल्म की कैसेट्स बाज़ार तक आ ही गई सब पाँच-पाँच रुपए इकट्ठा करने लगे ..सीडी और बैटरी के लिए ताकि लाइट जब चली जाए तो बैटरी से जोड़ दिया जाएगा। गाँव में कि
#ग़दर.... ** #ग़दर **...my first story written by me जी हाँ यह 2001 कि बात है जब.. “ग़दर”..फ़िल्म रिलीज़ हुई और लोग बेशब्री से इंतेज़ार कर रहे थे कि जल्दी से इसकी कैसेट बाज़ार में आजाये क्योंकि सिनेमाघरों में जाने का समय कहाँ था और पैसे भी उतने नही थे और तो और जो आनंद हमारे गाँव के पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर देखने से मिलती वो सिनेमाघरों में कहाँ ?..आख़िर फ़िल्म की कैसेट्स बाज़ार तक आ ही गई सब पाँच-पाँच रुपए इकट्ठा करने लगे ..सीडी और बैटरी के लिए ताकि लाइट जब चली जाए तो बैटरी से जोड़ दिया जाएगा। गाँव में कि
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