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Gumnam Shayar Mahboob
मुबारकबाद के काबिल हो रकीब तुम जिसको पहन रहे हो कल तक मेरा लिबास था उतरन मेरी मुबारक हो #मुबारक #काबिल #रकीबों #पहन #लिबास #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob
उतरन मेरी मुबारक हो #मुबारक #काबिल #रकीबों #पहन #लिबास #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob
read moreOMG INDIA WORLD
#काश तुम #कंगन होते #प्यार से हम #पहन लेते...!!💞 #कलाई_हमारी_होती ... और #कैद मे #तुम_होते ...!! ©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD #काश तुम #कंगन होते #प्यार से हम #पहन लेते...!!💞 #कलाई_हमारी_होती ... और #कैद मे #तुम_होते ...!!💞
#OMGINDIAWORLD #काश तुम #कंगन होते #प्यार से हम #पहन लेते...!!💞 #कलाई_हमारी_होती ... और #कैद मे #तुम_होते ...!!💞
read moreMr Shattered 😐
पहन कर तहजीब का जामा अपनी बदमाशियां कर गया, देखा इश्क़ की गालियों का शोर उस ओर निकल गया, मैं तो कमजोर मीनार था, उसने ठोकर मारी और मैं ढह गया, मेरा तसव्वुर था उसे देखना, और मैं देखता ही रह गया, पर मिली दूसरी नदी, गहराई देखा, उसमे उतरा और बह गया, बड़ी मुद्दतों बाद मौका मिला, और मैं उसको अपने दिल की बात कह गया, उसको भी मैं आवारा बदल अच्छा लगा और वो मेरे साथ ही रह गया, पहन कर तहजीब का जामा अपनी बदमाशियां कर गया आकाश R मिश्रा #पहन कर तहजीब का जामा अपनी बदमाशियां कर गया
#पहन कर तहजीब का जामा अपनी बदमाशियां कर गया
read moreRam N Mandal
काँच सा दिल काँच सा दिल है मेरा नक़ाब पहन के मत आना जब भी आओगे मेरे सामने दिल के आईना में तुम खुद से बेनक़ाब हो जाएगा पत्थर ही बन कर आना तो हीरा बन कर आना जो भी खामियां है मुझ में सब कुछ तुम तराश देना काँच सा दिल है मेरा नक़ाब पहन के मत आना - Ram N Mandal Kanch sa dil hai mera Naqab pahan ke mat aana Jab bhi aaoge mere samane Dil ke aainaa me tum Khud se benaqab ho jayega Patthar hi ban kar aana To hira ban kar aana
Kanch sa dil hai mera Naqab pahan ke mat aana Jab bhi aaoge mere samane Dil ke aainaa me tum Khud se benaqab ho jayega Patthar hi ban kar aana To hira ban kar aana
read moreB.L Parihar
*हम उस जमाने के बच्चे थे* पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे... स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी, कक्षा के तनाव में भाटा पेन्सिल खाकर ही हमनें तनाव मिटाया था। स्कूल में टाट-पट्टी की अनुपलब्धता में घर से खाद या बोरी का कट्टा बैठने के लिए बगल में दबा कर भी साथ ले जाते थे। कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का कायदा पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी। स्मॉल लेटर में बढ़िया एफ बनाना हमें बारहवीं तक भी न आया था। करसीव राइटिंग भी कॉलेज मे जाकर ही सीख पाए। उस जमाने के हम बच्चों की अपनी एक अलहदा दुनिया थी, कपड़े के थेले में किताब और कापियां जमाने का विन्यास हमारा अधिकतम रचनात्मक कौशल था। तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी। हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते (नई काॅपी-किताबें मिलती) तब उन पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का स्थाई उत्सव था। सफेद शर्ट और खाकी पेंट में जब हम माध्यमिक कक्षा पहूँचे तो पहली दफा खुद के कुछ बड़े होने का अहसास तो हुआ लेकिन पेंट पहन कर हम शर्मा रहे थे, मन कर रहा था कि वापस निकर पहन लें। पांच छ: किलोमीटर दूर साईकिल से रोज़ सुबह कतार बना कर चलना और साईकिल की रेस लगाना हमारे जीवन की अधिकतम प्रतिस्पर्धा थी। हर तीसरे दिन पम्प को बड़ी युक्ति से दोनों टांगो के मध्य फंसाकर साईकिल में हवा भरते मगर फिर भी खुद की पेंट को हम काली होने से बचा न पाते थे। स्कूल में पिटते, कान पकड़ कर मुर्गा बनते, मगर हमारा ईगो हमें कभी परेशान न करता.. हम उस जमाने के बच्चें शायद तब तक जानते नही थे कि *ईगो* होता क्या है? क्लास की पिटाई का रंज अगले घंटे तक काफूर हो गया होता,और हम अपनी पूरी खिलदण्डता से हंसते पाए जाते। रोज़ सुबह प्रार्थना के समय पीटी के दौरान एक हाथ फांसला लेना होता, मगर फिर भी धक्का मुक्की में अड़ते भिड़ते सावधान विश्राम करते रहते। हम उस जमाने के बच्चे सपने देखने का सलीका नही सीख पाते, अपने माँ बाप को ये कभी नही बता पाते कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, क्योंकि "आई लव यू माॅम-डेडी" नहीं आता था. हम उस जमाने से निकले बच्चे गिरते सम्भलते लड़ते-भिड़ते दुनिया का हिस्सा बने है। कुछ मंजिल पा गए हैं, कुछ यूं ही खो गए हैं। पढ़ाई, फिर नौकरी के सिलसिले में लाख शहर में रहे लेकिन जमीनी हकीकत जीवनपर्यन्त हमारा पीछा करती रहती रही है। अपने कपड़ों को सिलवट से बचाए रखना और रिश्तों को अनौपचारिकता से बचाए रखना हमें आज भी नहीं आता है। अपने अपने हिस्से का निर्वासन झेलते हम बुनते है कुछ आधे अधूरे से ख़्वाब और फिर जिद की हद तक उन्हें पूरा करने का जुटा लाते है आत्मविश्वास। कितने भी बड़े क्यूँ ना हो जायें हम आज भी दोहरा चरित्र नही जी पाते हैं, जैसे बाहर दिखते हैं, वैसे ही अन्दर से होते हैं। *"हम थोड़े अलग नहीं, पूरे अलग होते हैं. "* *कह नहीं सकते हम बुरे थे या अच्छे थे,* *"क्योंकि हम उस जमाने के बच्चे थे."* #Bachpan hmara
#bachpan hmara
read moreDivyansh Sheela Sinha
तुमसे फ़िर मिलूँगा कभी तो एक बात ज़रूर पूछूँगा कि वो जो पाज़ेब थी जो चाँदी के रंग की थी और जिसमें कुल २७ कड़ियाँ थीं नीचे लटकी सी औऱ आपस में वहीं जुड़ी हुईं जहाँ कोई नग जड़ा था मानो कोई लहर सी चल रही हो जिसे तुम्हारे पाँव अपने घुटने पे रख के जब मैंने पहनाया था तो इठलाते हुए तुमने कहा था एक दिन तुम्हारे सामने बाकी के १५ भी करके १६ श्रृंगार में आऊंगी और सिर्फ तुम्हारी हो जाऊँगी जब वो पाज़ेब पहन के तुम चलती थी तो तुम्हारी खुशबू के साथ खनक भी दूर से मुझतक पहुँचती थी तो ये बताना कि आज जब तुम किसी और की हो तो क्या १६ श्रृंगार में वो पाज़ेब भी पहन के जाती हो या उसके सामने सिर्फ करती हो अधूरा सा १५ श्रृंगार।।। #nojoto #story #pazeb #love #pyar #sirftum #yaadein Stuti Choudhary Krishna Pandey (Khooni Siyahi) Supriya Pandey Nilam Kumari Alfaaz~e~Aalam© Stuti Choudhary
Praveen Rajpurohit Chaba
मैं वहीं मिलूंगा तुमको वो जो मेरे ढाई साल तुमने गुज़ारे थे वो जो उन लम्हों में हम साथ साथ रहे थे वो जो हर दिन तुमको देखने की तमन्ना थी वो जो मेरे भीड़ भाड़ की कॉलेज की जिन्दगी में तुमसे नज़रों में कुछ कहने की तमन्ना थी वो तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी जो धड़कने आती थीं वो जो तुम मुझसे खामोशी में कहना चाहतीं थीं वो जो इक मिठास सी आती थी तुम्हारी मुस्कुराहट से वो जो तुम्हारे हर सूट का रंग मुझे याद हो जाता था वो जो तुम घर पहुंच कर हर रोज़ फ़ोन करतीं थीं वो जो तुम देर रात तक मेरी खबर लिया करतीं थीं वो जो तुम बताती थीं कि ज़िन्दगी कितनी कठिन है वो जो उस ज़िन्दगी में तुम मुझे अपना बतातीं थीं सच बताऊँ... तो मुझे अपनी ज़िंदगी का सबकुछ उन्हीं पलों में मिल गया था वो ढाई साल जिनमें तुम मेरी थीं, उनमें अब किसी और की नहीं हो सकतीं उन्हीं ढाई साल के हर एक पल को धीरे धीरे रोज़ बिताता हूँ ज़िन्दगी भी फुरसत दे और तुम्हारे अपने कभी तुम्हें इजाज़त दें तो लौट कर इन्हीं ढाई सालों में आ जाना, तुम गुलाबी सूट पहन के मैं काली शर्ट पहन कर तुम्हारा वहीं इंतज़ार करूँगा जहां हम कुछ कदम चले थे क्योंकि एक वही समय है जहां मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर चल सकता हूँ बेफिक्र क्योंकि कभी आना.... मैं वहीं मिलूंगा तुमको.... PraveeN
विकास जोधपुरी
जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं। कुलाह तौक से भारी पहन के आते है। अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं। यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं। इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं। जो मस्जिदों में सफारी पहन के आते हैं। " #vikashmarwadi#rahatindori
विकास शाक्य
लुंगी पहन कर ट्रक चलाने पर 2000 हजार का जुर्माना लगेगा पर लुंगी पहन कर यूपी चलाया जा सकता है 😁😁😁😁