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बेजुबान शायर shivkumar
महागौरी उपासना, अष्टम दिवस विधान I सारे पूजन कार्य में, सफ़ेद रंग प्रधान II . श्वेत-कुंद के फूल-सा, माँ गौरी का रंग I श्वेत शंख व चन्द्र सजे, आभूषण बन अंग II . दाएं नीचे हाथ में धारण करे त्रिशूल I डमरू बाएँ हाथ में, वस्त्र शान्ति अनुकूल II . माँ की मुद्रा शांत है, और चार हैं हाथ I बैल, सिंह वाहन बने, रहते उनके साथ II . आठ वर्ष की आयु में, देवी का अवतार I जो इनका पूजन करे, उसका बेडा पार II . शुम्भ-निशुम्भ प्रकोप से, साधु संत थे त्रस्त I माँ गौरी आशीष-पा, दिखे सभी आश्वस्त II . शक्ति स्वरूपा कौशिकी, माँ गौरी का अंश I दैत्यों शुम्भ-निशुम्भ का, अंत किया था वंश II . दान नारियल का करें, काला चना प्रसाद I माँ है मंगल दायिनी, दूर करे अवसाद II . माँ गौरी की हो कृपा, मिटते सारे कष्ट I कल्मुष धुल जाते सभी, होते पाप विनष्ट II . गौरी के आशीष से, पिण्ड छुडाते पाप I जब श्रद्धा से पूजते, मिटते तब संताप II . हमेशा साधु-संत का, यह अटूट विश्वास I माँ में अमोघ शक्ति तो, दुःख न भटके पास II . महिला चुनरी भेंट कर, प्राप्त करें आशीष I गौरी के दिन अष्टमी, सभी नवाएँ शीश II ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #नवरात्रि // देवी महागौरी // #महागौरी #उपासना , अष्टम दिवस विधान I सारे पूजन कार्य में, सफ़ेद रंग प्रधान II
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read moreMantra Mahima Neeraj Shukla
Balwant Mehta
पर्व है शक्ति की आराधना का देवी मां की उपासना का। ©Balwant Mehta #navratri #आराधना #उपासना #मां
Divyanshu Pathak
हमारे पुरखों ने उपासना को अनिवार्य बताया।सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद तारे निकलने तक इसका एक मात्र कारण लम्बी आयु और बेहतर स्वास्थ्य था। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपासते यश्च पश्चिमाम्। स शूद्रवद्बहिष्कार्य: सर्वस्माद् द्विजकर्मणः।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 यदि तुम प्रातः और सांयकाल में उपासना नहीं करते हो तब तुम शूद्रता को प्राप्त हुए श्रेष्ठ कर्म से बहिष्कृत (विमुख) हो जाओगे। (मनुस्मृति अध्याय -02 श्लोक - 103) जब अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है तो हमें ठीक होने वाली बात भी गलत मालूम पड़ती है।लेकिन स्वविवेक से यह ज़रूर चिंतन करना चाहिए कि सही क्या है?कुछ गलत मिल जाए तो उसे ठीक करने का प्रयास तो होना ही चाहिए।महाभारत में भी उपासना के बारे में ऐसा ही वर्णन है---- ऋषयो नित्यसंध्यत्वाद्दीर्घमायुरवाप्नुवन्। तस्मातिष्ठेत्सदा पूर्वां पश्चिमां चैव वाग्यतः।। ऋषियों ने सुबह और सांयकाल की उपासना कर दीर्घायु वाला जीवन प्राप्त किया।इसलिए हमें भी बैठकर सुबह और शाम को उपासना करनी चाहिए। महाभारत अनु. अध्याय 104 श्
जब अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है तो हमें ठीक होने वाली बात भी गलत मालूम पड़ती है।लेकिन स्वविवेक से यह ज़रूर चिंतन करना चाहिए कि सही क्या है?कुछ गलत मिल जाए तो उसे ठीक करने का प्रयास तो होना ही चाहिए।महाभारत में भी उपासना के बारे में ऐसा ही वर्णन है---- ऋषयो नित्यसंध्यत्वाद्दीर्घमायुरवाप्नुवन्। तस्मातिष्ठेत्सदा पूर्वां पश्चिमां चैव वाग्यतः।। ऋषियों ने सुबह और सांयकाल की उपासना कर दीर्घायु वाला जीवन प्राप्त किया।इसलिए हमें भी बैठकर सुबह और शाम को उपासना करनी चाहिए। महाभारत अनु. अध्याय 104 श्
read moreEk villain
मनुष्य में अपने विचारों और सभी जनों को अभिव्यक्त करने की पर्याप्त क्षमता होती है उपासना भी एक तरह की अभिव्यक्ति ही है इस दौरान हम मूर्ति पूजा करते हैं या फिर किसी पवित्र ग्रंथ या अपने अपराध देकर निष्ठा व्यक्त करते हैं इसके लिए हमें कभी शब्दों का प्रयोग करते हैं तो कभी मोहन भी रहते हैं प्रार्थना उपासना का मुख्य द्वार है उसके महान शक्ति यानी परंपरा का संबंध से है जोड़ने का प्रयास होता है यह शरीर मानव आणि की पुकार है इन सब के बीच यह जानना भी आवश्यक है कि हम जीवन यापन निधिपुर पूजा पाठ में संगठन रहते हुए भी मानवता की सेवा में भी मुक्त तो नहीं हो चुके ऐसे में हृदय में मानवता की भावना जगाने के लिए एक ही जैसा उचित गुरु का होना भी महत्व रखता है ऐसा गुरु जो हमें मानव कल्याण के लिए उपासना का मार्ग दिखाएं गुरु वहीं उपासना उधार मौके के समान होती है जो कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती ऐसा ना हो कि भौतिक सुखों को भोग थे हम उपासक का मूल मंत्र भी भूल जाएं अज्ञान से ज्ञान की ओर अग्रसर होना ही उपासना है यह भी सच है कि हिरदे में सत्यता के अभाव में उपासना नहीं हो सकती जितनी दूर खान पीन और चलना फिरना उतना ही आवश्यक उपासना को अपने जीवन का हिस्सा बनाना हमारे चारों और प्राकृतिक संपदा पेड़ पौधे वायु सूर्य और चंद्रमा का हमारे जीवन को नहीं रखने में कितना योगदान है उसकी अनुभूति ही उपासना है यदि मन में मानवता के प्रति सहनशीलता का अभाव है या आप सिर्फ नहीं तो सुख के लिए ही अपने इष्ट के आगे हाथ जोड़े यहां सिर झुकाते हैं तो इसके आप की उपासना पूर्ण नहीं हो सकेगी ©Ek villain #उपासना मानव जीवन में #selfhate
Ankur Mishra
उपासना करते हैं अराधना करते हैं माँ तुझे बारम्बार प्रणाम करते हैं लिखने को शब्द लाए कहाँ से जो व्यक्त करें तुम्हें शब्दों में लब खामोश जुबां मौन ही रखते हैं तेरे आगे हम सब नतमस्तक हैं व्याख्या करें क्या आपकी आपके त्याग की आप खुद को भूल गए हमारा भविष्य बनाने में ©Ankur Mishra #उपासना #worldpostday
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। मा नो हृणीथा अतिथिं वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः । यः सुहोता स्वध्वरः ॥ पद पाठ मा꣢ । नः꣣ । हृणीथाः । अ꣡ति꣢꣯थिम् । व꣡सुः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । पु꣣रुप्रशस्तः꣢ । पु꣣रु । प्रशस्तः꣢ । ए꣣षः꣢ । यः । सु꣣हो꣡ता꣢ । सु꣣ । हो꣡ता꣢꣯ । स्व꣣ध्वरः꣢ । सु꣣ । अध्वरः꣢ ॥ जैसे उत्तम प्रकार पूजा किया गया परमेश्वर पूजा करनेवाले को सद्गुण आदि की सम्पत्ति देकर उसका कल्याण करता है, वैसे ही भली-भाँति सत्कार किया गया अतिथि आशीर्वाद, सदुपदेश आदि देकर गृहस्थ का उपकार करता है। इसलिए परमेश्वर की उपासना में और अतिथि के सत्कार में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए ॥ Just as a well-worshiped God gives welfare to the worshiper by giving him the property of virtue etc., in the same way, the well-behaved guest blesses the householder by giving blessings, sodupadas etc. Therefore, never worship God in worship and hospitality. ( सामवेद मंत्र ११० ) #सामवेद #वेद #आतिथ्य #अतिथि #परमेश्वर #उपासना
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