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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। प्र॒जाप॑तौ त्वा दे॒वता॑या॒मुपो॑दके लो॒के नि द॑धाम्यसौ। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥ पद पाठ प्र॒जाप॑ता॒विति॑ प्र॒जाऽप॑तौ। त्वा॒। दे॒वता॑याम्। उपो॑दक॒ इत्युप॑ऽउदके। लो॒के। नि। द॒धा॒मि॒। अ॒सौ॒ ॥ अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ हे जीव ! जो (असौ) यह लोक (नः) हमारे (अघम्) पाप को (अप, शोशुचत्) शीघ्र सुखा देवे, उस (प्रजापतौ) प्रजा के रक्षक (देवतायाम्) पूजनीय परमेश्वर में तथा (उपोदके) उपगत समीपस्थ उदक जिसमें हों (लोके) दर्शनीय स्थान में (त्वा) आप को (नि दधामि) निरन्तर धारण करता हूँ ॥ Hey creature Which (Asau) this lok (nah) shall dry our (agham) sin (up, Shoshuchat) soon, the (Prajapatau) protector of the subjects (Devatayam) in the venerable God and (Upodake) subordinate Udkat in which (Lokay) is visible In the place (Twa), I keep you (childless) constantly. ( यजुर्वेद ३५.६ ) #यजुर्वेद #वेद #धारणकर्त्ता
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। त्वामग्ने धर्णसिं विश्वधा वयं गीर्भिर्गृणन्तो नमसोप सेदिम। स नो जुषस्व समिधानो अङ्गिरो देवो मर्तस्य यशसा सुदीतिभिः ॥ पद पाठ त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ध॒र्ण॒सिम्। वि॒श्वधा॑। व॒यम्। गीः॒ऽभिः। गृ॒णन्तः॑। नम॑सा। उप॑। से॒दि॒म॒। सः। नः॒। जु॒ष॒स्व॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। अ॒ङ्गि॒रः॒। दे॒वः। मर्त॑स्य। य॒शसा॑। सु॒दी॒तिऽभिः॑ हे (अग्ने) विद्वन् ! आप जैसे हम लोग (गीर्भिः) वाणियों से (गृणन्तः) स्तुति करते हुए (विश्वधा) संसार के धारण करने वा (धर्णसिम्) अन्य को धारण करनेवाले (त्वाम्) आपके (नमसा) सत्कार से (उप, सेदिम) समीप प्राप्त होवें और हे (अङ्गिरः) अङ्गों में रमते हुए ! (सः) वह (देवः) दाता (समिधानः) प्रकाशमान आप (मर्त्तस्य) मनुष्य के (सुदीतिभिः) उत्तम दानों से (यशसा) जल, अन्न वा धन से (नः) हम लोगों का (जुषस्व) सेवन करें, वैसे (वयम्) हम लोग आपके समीप स्थित होवें ॥ Hey (fire) We like you (Giribhi:) praising from the Vyāras (Grinanyah), attaining (Visvadha) the wearing of the world or (Dharnasim) holding the other (Tvam) by your (Namassa) hospitality (Up, Sedim) will come near and Agirah:) Crying in the eggs! (S:) He (Dev:) Giver (Samidhan:) Prakashman You (Murtasya) Man's (Suditibhi:) From the best grains (Yashsa) Water, With food or wealth (Nah) We should consume people (lust), by the way (Vyam) we People will be located near you. ( ऋग्वेद ५.८.४ ) #ऋग्वेद #वेद #धारणकर्त्ता #ईश्वर #सर्वेश्वर
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।। ओ३म् ।। यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥ पद पाठ यत्। अ॒ङ्ग। दा॒शुषे॑। त्वम्। अग्ने॑। भ॒द्रम्। क॒रि॒ष्यसि॑। तव॑। इत्। तत्। स॒त्यम्। अ॒ङ्गि॒रः॒॥ जो न्याय, दया, कल्याण और सब का मित्रभाव करनेवाला परमेश्वर है, उसी की उपासना करके जीव इस लोक और मोक्ष के सुख को प्राप्त होता है, क्योंकि इस प्रकार सुख देने का स्वभाव और सामर्थ्य केवल परमेश्वर का है, दूसरे का नहीं। जैसे शरीरधारी अपने शरीर को धारण करता है, वैसे ही परमेश्वर सब संसार को धारण करता है, और इसी से इस संसार की यथावत् रक्षा और स्थिति होती है ॥ By worshiping God who is the God of justice, mercy, well-being and friendship of all, the living being gets the happiness of this world and salvation, because in this way the nature and power of giving happiness is only to God and not to the other. Just as the body holds its own body, so does God take over the world, and this is the perfect protection and position of this world. ( ऋग्वेद १.१.६ ) #ऋग्वेद #वेद #परमात्मा #धारणकर्त्ता #createrofworld
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