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shreebhagya Rajpurohit Sewad
हमारे लिए क्या क्या करते हैं और कितना त्याग करते हैं फिर भी कुछ लोग उन्हें समझ नहीं पाते वह जो भी करते हैं अपने बच्चों के लिए ही करते हैं उनकी रोक-टोक में हमारी ही फिक्र होती है कदर करनी चाहिए उनकी फिर भी कुछ बेटियां या बेटे उटधोखा दे जाते है उनको. कल के आए किसी लड़के या लड़की के लिए समझ नहीं पाते वह प्यार जो मां बाप देते है सम्मान करना चाहिए उनका अपमान करते है देनी हो तो इज्जत दो दो पल का दिखावा नहीं पूजना हो तो मां बाप ओ पूजा वह साथ हमारा कभी तोड़ेंगे नहीं जीवन के हर पहलू में हाथ छोड़ेंगे नहीं आज जो भी हो उन्हीं की मेहरबानी है प्यार दिया उन्होंने मुझे तभी तो कहानी है सिखाया उन्होंने इज्जत करना मुझे समाज के हर व्यक्ति की एक ही बात कहते हैं राजपुरोहित हो तो गर्व होना चाहिए राजपुरोहित होने पर बुरा मत मानो लोगों का कहने दो राजस्थानी तुम बोलो गर्व है मुझे हाथों में राजस्थानी राजपुरोहित और सेवर मां बाप का प्यार हर किसी को मिलता नहीं पर जिसको मिलता है वह कदर करता नहीं सिखाते हैं हमें परिवार का साथ निभाना नाज होता है उन्हें जब करते हैं नाम हम उनका रोशन धन्यवाद भाग्यश्री राजपुरोहित सेवड Maa baap
Maa baap
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 7 – अमोह 'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।' मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क
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|| श्री हरि: || 9 - श्रद्धा की जय आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है। कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता। नरेश न उच्छृं
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