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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 15 - राधे-श्याम का कुआँ 'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।' मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
15 - राधे-श्याम का कुआँ

'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।'

मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Ramveer Gangwar

#ramveer

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आज फिर
हारने लगी मैं
अन्तिम हथियार उठा लिया,
इन नैनो को सर झुकाकर आंसुओ से भीगा दिया ।

बड़ी  कोई  बात  नहीं थी,
थी हवाओं सी ही गलती ।
एक  तरीका आता हमको,
संवेदनाएं जिससे मिलती ।
एक  अवला सी हूं मैं बस,
सबको इतना दिखा दिया ।

इन नैनो को सर झुकाकर आंसुओ से भीगा दिया ।

©गंगवार रामवीर
 #NojotoQuote #ramveer

शिवम ओरछाधाम

*🌹 पलकें झुकाकर सलाम करते हैं, दिल की दुआ आपके नाम करते हैं...* *कुबूल हो अगर तो मुस्कुरा देना हम यह प्यार सा आपके नाम करते हैं...* *🌹 पलकें झुकाकर सलाम करते हैं, दिल की दुआ आपके नाम करते हैं...* *कुबूल हो अगर तो मुस्कुरा देना हम यह प्यार सा आपके नाम करते हैं...* Rampal Harender Prasad Anil Kumar Mishra Pramod Kumar Aashutosh Kumar

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*🌹 पलकें झुकाकर सलाम करते हैं, दिल की दुआ आपके नाम करते हैं...*

*कुबूल हो अगर तो मुस्कुरा देना हम यह प्यार सा आपके  नाम करते हैं...* #NojotoQuote *🌹 पलकें झुकाकर सलाम करते हैं, दिल की दुआ आपके नाम करते हैं...*

*कुबूल हो अगर तो मुस्कुरा देना हम यह प्यार सा आपके  नाम करते हैं...*
*🌹 पलकें झुकाकर सलाम करते हैं, दिल की दुआ आपके नाम करते हैं...*

*कुबूल हो अगर तो मुस्कुरा देना हम यह प्यार सा आपके  नाम करते हैं...* Rampal Harender Prasad Anil Kumar Mishra Pramod Kumar Aashutosh Kumar

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 47 - वैद्यराज कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है। कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा। अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते

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।।श्री हरिः।।
47 - वैद्यराज

कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है।

कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा।

अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते

Shashi Aswal

यूँ दुनिया से नज़रें झुकाकर हम अक्सर                        कई तूफानों को कैद कर लिया करते है... #नज़रें #तूफान #कैद #झुकाकर #2liners #NojotoHindi #ShashiRawat #Shashiwritings

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 37 - कनूँ कहाँ है? अचानक भद्र चौक्के गया - 'कनूँ कहाँ है?' यह कन्हाई दो क्षण न दीखे तो गोपकुमारों के प्राण छटपटाने लगते हैं। कृष्ण थोडी दूर नहीं चला जाय तो सब दौड़ते हैं होड़ लगाकर कि कौन पहिले नन्दलाल को स्पर्श करेगा। किंन्तु इस समय भद्र अपनी - अपने ह्रदय की व्याकुलता नहीं सोचता। भद्र चिन्तित्त हो उठा है कृष्ण के लियेय़ कन्हाई बहुत चपल है। वृक्षपर चढेगा, तो पतली शाखा पर भी चढने में¸हिचकता नहीं। दौड़ेगा तो नीचे देखेगा ही नहीं कि भूमि पर कुश, कण्टक, गड्ढे क्या हैं। जल में उतरेगा त

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।।श्री हरिः।।
37 - कनूँ कहाँ है?

अचानक भद्र चौक्के गया - 'कनूँ कहाँ है?' यह कन्हाई दो क्षण न दीखे तो गोपकुमारों के प्राण छटपटाने लगते हैं। कृष्ण थोडी दूर नहीं चला जाय तो सब दौड़ते हैं होड़ लगाकर कि कौन पहिले नन्दलाल को स्पर्श करेगा। किंन्तु इस समय भद्र अपनी - अपने ह्रदय की व्याकुलता नहीं सोचता। भद्र चिन्तित्त हो उठा है कृष्ण के लियेय़ 

कन्हाई बहुत चपल है। वृक्षपर चढेगा, तो पतली शाखा पर भी चढने में¸हिचकता नहीं। दौड़ेगा तो नीचे देखेगा ही नहीं कि भूमि पर कुश, कण्टक, गड्ढे क्या हैं। जल में उतरेगा त

KD

For some one

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देखा था जब उसे, कहा मैंने खुदा को की वो मिल जाये मुझको मैं उसे।
जरा पास आये अ जी रुक भी वो जाये,
गैर न हो जाये वो ,बस इतनी हाश्रत थी मेरी।
पलकों की खिड़की से,सरमो हया से,नजरे झुकाकर यूँ इकरार करना ।
न जाने वो आँखों से क्या कह रही थी,अजी मनो वो आँखों से गजल कह रही हो और नजरे झुकाकर यूँ इकरार करना ,उसी से ने सिखाया यूँ मुझे प्यार करना।। For some one

Anil Siwach

23 - भेंट || श्री हरि: || 'दादा!' बड़ी कठिनाई तो यह है कि इस समय सिर उठाकर इधर-उधर देखा नहीं जा सकता और यह दाऊ तो पूरा

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23 - भेंट 
 || श्री हरि: ||




'दादा!' बड़ी
कठिनाई तो यह है कि इस समय सिर उठाकर इधर-उधर देखा नहीं जा सकता और यह दाऊ तो पूरा
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