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Anuj Ray
भोली सूरत के भुलावे में मत आना, सारा सामान घर का लूट के ले जाते हैं। थक जाओगे ज़िन्दगी भर ,पौछते पौछते आंसू, ज़ख़्म इतना गहरा दे जाते हैं। ©Anuj Ray #भोली सूरत के भुलावे में...
#भोली सूरत के भुलावे में...
read moreVivek
सूरज तुम्हारी तारीफ में आज फिर उगेगा पूरब से दिल की बात को कह देना तुम अपनी भोली सूरत से...!!! ©Vivek #भोली सूरत #सूरज #तुम्हारी तारीफ
Pankaj Singh Chawla
माँ तू कितनी भोली है, तुझे कुछ नही आता है, माँ तू कितनी भोली है, तुझे आजकल का कुछ नही पता, माँ तू कितनी भोली है, तुझे तो मोबाईल चलाना भी नही आता, माँ तू कितनी भोली है, तुझे आजकल के फैशन का भी नही पता, माँ तू कितनी भोली है, तुझे फ़ास्ट फ़ूड बनाना भी नही आता, माँ तू कितनी भोली है, तुझे किटी पार्टीयो में जाना नही आता, माँ तू कितनी भोली है, हाँ माँ मेरी तू बहुत भोली है, जो तुझे आता है वो इस जहाँ में किसी को नही आता, इसलिए माँ तू भोली है, हाँ माँ तू भोली है, तुझे लाड़ लुटाना आता है, हाँ माँ तू भोली है, तुझे कहानी सुनाना आता है, हाँ माँ तू भोली है, तुझे स्वादिष्ट मिठाईया बनाना आता है, हाँ माँ तू भोली है, तुझे भजन कीर्तन करना आता है, हाँ माँ तू भोली है, तुझे भूलो को समझना आता है, हाँ माँ तू भोली है।। हमेशा ऐसे ही भोली रहना मेरी माँ तेरे भोलेपन में बस्ती जान मेरी है।। आजकल के दौर में कितना कुछ बदल गया है हमारी सोच भी बदल गयी है वही कुछ इस तरह का भी देखने को मिलता है, हम अपने माता पिता को दिन में न जाने कितनी दफा कह देते है आपको कुछ नही आता, जबकि आजक्त हमने जितना भी सिखा सब उन्ही से तो सिखा और सिख रहे है आज उन्हें ही कहते है आपको कुछ नही आता कुछ नही पता, मै भी इसमें शामिल हूँ मेरे दोस्तों दुसरो को कहने से पहलेे मैं खुद पर कटाक्ष करूँगा, आजक्त जो हुआ उसे भूल आगे बढ़िए माता पिता को कभी ऐसा न कहिये🙏🙏😇😇💕💕 #माँ #भोली #Yqbaba #yqdidi #yqpowrimo Special guest
आजकल के दौर में कितना कुछ बदल गया है हमारी सोच भी बदल गयी है वही कुछ इस तरह का भी देखने को मिलता है, हम अपने माता पिता को दिन में न जाने कितनी दफा कह देते है आपको कुछ नही आता, जबकि आजक्त हमने जितना भी सिखा सब उन्ही से तो सिखा और सिख रहे है आज उन्हें ही कहते है आपको कुछ नही आता कुछ नही पता, मै भी इसमें शामिल हूँ मेरे दोस्तों दुसरो को कहने से पहलेे मैं खुद पर कटाक्ष करूँगा, आजक्त जो हुआ उसे भूल आगे बढ़िए माता पिता को कभी ऐसा न कहिये🙏🙏😇😇💕💕 #माँ #भोली #yqbaba #yqdidi #yqpowrimo Special guest
read moreAbundance
#भोली भाली बहुत बुरे होते है भोले लोग बिन गलती इल्जाम सिर पर ले लेते..... हाय मोरी मैया बड़े शायर हमेशा जीत जाते मै हार अपने सिर पर ले लेती हूँ ©Mallika
Dr.UMESH ARSHAAN
वो भोली सी चुपचाप अच्छी लगती थी मायूस मासुम थोड़ी बच्ची लगती थी उसके खुले बाल लगते थे अच्छे मुझको अपनी बातो से वो थोड़ी सच्ची लगती थी ©Dr.UMESH ARSHAAN #भोली सी #girl
Parnassian's Cafe
दिल का दीपक बुझा है मेरे कैसे कहूं दिवाली है। आँखों से वो कत्ल कर गई सूरत भोली-भाली है।। दिल का दीपक बुझा है मेरे कैसे कहूं दिवाली है। आँखों से वो कत्ल कर गई सूरत भोली-भाली है।। #दिल #का #दीपक #बुझा #है #मेरे #कैसे #कहूं #दिवाली #है। #आँखों #से #वो #कत्ल #कर #गई #सूरत #भोली-#भाली #है।। #ललितकुमारगौतम #lalitkumargautam #parnassianscafe
dayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreSatya Prakash Upadhyay
#DaughtersDay क्यों होतीं हैं बेटियां ख़ास? जब समाज प्रश्न ये करता है,तब समझो उनकी स्थिति दयनीय है। है अवतार जो सरस्वती लक्ष्मी शक्ति की वो तो बस वन्दनीय हैं।। बेटियों से आता संस्कार,संस्कृति की वो जननी है। जिस घर मे हों बेटियां शुभता अवश्य हीं होनी है।। पायलों की रुनझुन बोली हो या मीठी तोतली बोली हो। माँ के आंचल की भोली हो या भाई के सर की रोली हो।। बचपन की प्यारी होली हो या परिवार के साथ दीवाली हो। सब की आंखे नम हो जाती जब आंगन से उठती डोली हो। सब खुशियों की झोली है,रौनक की मानो टोली है। पिता के आंगन की लाडली वो,सब तनाव हटाने की गोली है।। बड़ी बेटी होती जिस घर में,छोटों को होता दूसरी माँ का एहसास। कितना भी कर लूं वर्णन नहीं बता सकता क्यों बेटियाँ होतीं हैं ख़ास।। क्यों होतीं हैं #बेटियां ख़ास? जब #समाज #प्रश्न ये करता है,तब #समझो उनकी #स्थिति #दयनीय है। है #अवतार जो #सरस्वती #लक्ष्मी #शक्ति की वो तो बस #वन्दनीय हैं।। बेटियों से आता #संस्कार,#संस्कृति की वो #जननी है। जिस #घर मे हों बेटियां #शुभता #अवश्य हीं होनी है।।
Siddharth shrivastav..#
अगर आप किसी लड़की को भोली समझते हो तो भोली वो नहीं, भोले आप हो मेरे दोस्त 😝😜😝 अगर आप किसी लड़की को भोली समझते हो तो भोली वो नहीं, भोले आप हो मेरे दोस्त 😝😜😝
अगर आप किसी लड़की को भोली समझते हो तो भोली वो नहीं, भोले आप हो मेरे दोस्त 😝😜😝
read moreMukta Sharma Tripathi
।।मेरी मैया भोली-भोली।। कभी भी उफ ना बोली। न तिल भर ही है डोली। पंख समेटे गुप-चुप जीती मेरी मैया भोली-भोली। माँ मेरी बड़ी श्रमजीवी । कभी बहू तो कभी बीवी। मोल कभी न चुका सकूं मैं अमीर हम, खुद झेली गरीबी। तप का समय खत्म हुआ । भगवन ने पूरी की है दुआ। भाईयों की छत्रछाया में जैसे नव-जीवन शुरू हुआ। यूँ ही प्रसन्न तुम रहो सदा। साया हमपर तेरा रहे सदा। खुशहाली के खुश साए में पति संग तंदरुस्त रहो सदा। ।।मुक्ता शर्मा ।। #hindipoetry #musafirparinde #हिंदीकविता #माँ #mother #love
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