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उसी समय भैया ने कराहकर पुकारा, "ज्योति!" ज्योत्स्ना बढ़ने लगी। किंतु किशोर ने कठोर स्वर में कहा, "रहने दे ज्योत्स्ना! इन हाथों से उन्हें न छू! अन्यथा उनकी बीमारी कभी नहीं जाएगी। मैं जाता हूँ।" और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह भैया के कमरे में घुस गया। ज्योत्स्ना की आँखें फटी की फटी रह गईं, जैसे सफेदी पर उसकी पुतलियाँ ऐसी ही थीं, मानो सफेद स्याही-सोख पर किसी ने स्याही के धब्बे डाल दिए हों, निस्पन्द-सी, भावहीन, शून्य और निर्जीव सी... #विषाद_मठ #coronavirus#विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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अमिताभ चल पड़ा। बूढ़ा चिल्लाने लगा, "बाबू,कहाँ जा रहे हैं आप? बाबू, मेरी लड़कियाँ बहुत अच्छी हैं, वह आपको खुश कर देंगी।आइए तो एक बार..." बूढ़ा चिल्लाता रहा। अमिताभ दूर निकल गया। तब वह बूढ़ा गुर्राता हुआ भीतर घुस गया और चिल्लाने लगा, "बाबू से बात नहीं की तुममें से किसी ने। नाराज़ कर दिया उन्हें । सुअर! अब क्या खाओगी? मेरा सर..." तीनों लड़कियाँ अपराधिनी बनकर सहमी-सी खड़ी रहीं। बूढ़ा खीझता रहा। अमिताभ क्रोध से विषक्त मन ही मन कहता जा रहा था, 'कंबख्त, बदमाश! चुड़ैलों में ले जाकर खड़ा कर दिया मुझे। उफ! कितनी भयानक थीं, बिलकुल मैकबेथ की विचेज़! बिलकुल विचेज़।' #विषाद_मठ #coronavirus #विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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गीत रूक गया। इकबाल ने किशोर की ओर देखा, वह चुप बैठा था। उसने एक झोली पसारकर कहा, "किशोर! तुम भी कुछ मदद करो।" किशोर की आँखें भीग गईं। अवरुद्ध स्वर में उसने कहा, "मेरे पास कुछ भी नहीं है इकबाल!" "अरे भले आदमी, कुछ भी नहीं है?" इकबाल ने मुस्कुराकर कहा। "सचमुच कुछ नहीं है। भैया का स्कूल बंद हो गया है, क्योंकि बहुत से लड़के पढ़ने नहीं आते। आधी तन्ख्वाह मिलती है। कोई बीमा कराता नहीं । खर्च पूरा पड़ता नहीं। मैंने हफ्ता भर हुआ, कॉलेज छोड़ दिया है..." इकबाल का हाथ गिर गया और मुँह से निकला, "अरे!" किशोर ने ग्लानि से मुँह फेर लिया। उसका हृदय पानी पानी हो रहा था। #विषाद_मठ #coronavirus#विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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"अब्बा का तो कहना है कि मैं तो हिंदुओं के जाल में फँसकर सत्यानाश कर रहा हूँ। उनके कहने पर चलता तो आज मुझे कोई अच्छी नौकरी लग गई होती। कहते हैं कि नवाबी के बाद अब तो ज़रा मुस्लिमों के हाथ ताकत आई है। अब भी नहीं लिए जाओगे तुम?" किशोर को हँसी आ गई। इकबाल कहता रहा, "तुम्हें क्या पता कि घर में मेरे बड़े बड़े छुरीबाज हैं। बड़े भाई हैं, चाचा के लड़के, कहेंगे कि भूखों को दो मगर सिर्फ मुस्लिम लीग के ज़रिए..." उसकी हँसी शीशे के टूटने की तरह झनझना उठी, "हिन्दुस्तान!" इकबाल कहते हुए उठा, "या मेरे हिन्दुस्तान! क्या होगा तेरा?" #विषाद_मठ #coronavirus #विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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....पहला आदमी अंधकार में खो गया। भूख से पस्त शोभा सुन रहा था। वह केवल इतना ही समझ पाया कि चावल की चोरी हो रही है। चावल? तब तो माँगना चाहिए। शायद कुछ दे दें। नावें खुलने लगीं। वह वेग से कूदकर एक नाव में चढ़ गया और इससे पहले कि उसके मुँह से कुछ निकले, तड़ातड़ चार लठ्ठ उसके सिर पर बज उठे। वह लुढक कर नदी में गिर गया और पछुआ नौकरों से सुरक्षित नावें चल पड़ीं।... ब्रिटिश साम्राज्य को उस समय भी अपने श्रेष्ठ प्रबंध पर अभिमान था। वह सत्य और न्याय के लिए भारत पर अपना शासन चला रहा था।... सुबह नदी पर एक फूली हुई लाश तैर रही थी जिस पर योगियों की तरह गिद्ध बैठे हुए थे। #विषाद_मठ #coronavirus #विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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एक भूखे ने उसे रोक दिया। उसने हाथ पसारकर कहा,"बाबू! कई दिन की भूख है, कुछ दे दो..." अरूण सिहर उठा - यह है हिन्दुस्तान। इसी को बचाने के लिए इतना शोरगुल?उसके दिमाग में एक और बात आई। जो अपना पेट तक भरने के योग्य नहीं, उन्हें जीवित रहने का ही क्या अधिकार है? पैसा, पैसा है आजकल जो कुछ है;. जिसके पास पैसा नहीं, वह कुछ भी नहीं कर सकता। क्यों नहीं है इनके पास पैसा? बिना योग्यता के तो पैसा नहीं मिल सकता। फिर जीवित रहने का लाभ ही क्या ? दया और करूणा पर पलने वाला मनुष्य नहीं, कुत्ता है। उनको तो जो दो टुकड़े डाल दे, उसी के गुलाम हैं वह। भिखारी ने फिर कहा, "बाबू, दया करो, तीन दिन से..." #विषाद_मठ #coronavirus #विषाद_मठ #रांगेय_राघव
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भाग्य की बात! वही अभागा मुँह के बल गिरा। आग भड़काकर पुलिस लौट गई, किंतु उसके बाद कलकत्ते की रेल जैसे कभी इस ओर लौटकर नहीं आई। बूढ़े की निराश आँखें सूने पेड़ों से टकराकर आसमान से उलझ गईं। वह अपना ह्रदय सँभाले रह गया था। बूढ़े की आँखों में पानी भर आया। उसने जोर से नाक साफ की और फिर उसके दिमाग में वह चित्र जल्दी जल्दी दौड़ने लगा। बसंत सुनकर विक्षुब्ध हो गया था। उसके हाथ का गँड़ासा अपने आप उठ गया। "भैया को मार डाला ?" उसके शब्द गले में अटक गए थे। #पुरानी_कहानी #विषाद_मठ #coronavirus #पुरानी_कहानी #विषाद_मठ#रांघेय_राघव
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