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Blue Butterfly
The Urge (Unzip it) The urge. The night previous, was a long one, sleepless. The thoughts of long desired, awaited passionate unison kept them awake, until the sleep too decided to offer them company, staying awake. Finally, when they met, words went drought, throats went dry, steps freezed, arms desperate for a hug went numb, heart pounded like breaking the walls, thoughts went berserk. The eyes, the desperate eyes, all four of them, its strong allure, pulling them towards each other’s direction. Though their
The urge. The night previous, was a long one, sleepless. The thoughts of long desired, awaited passionate unison kept them awake, until the sleep too decided to offer them company, staying awake. Finally, when they met, words went drought, throats went dry, steps freezed, arms desperate for a hug went numb, heart pounded like breaking the walls, thoughts went berserk. The eyes, the desperate eyes, all four of them, its strong allure, pulling them towards each other’s direction. Though their
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(Conversations of the mind) Love, that first encounter; The sky above looked blue than ever before. The air breathin seemed so fleshly fragrant. For as long as I remember, this has to be one of the most unforgettable moments in my life. If this was love, yes, I was beginning to be in Love. Looking straight at her eyes, "I think, lets have another cup of coffee", proposed my heart, in silence; To the lovely one, who was sitting right across my table, at the coffee shop. (excerpts from my novella on love, which would never be written) #yqbaba #yourquote #aestheticthoughts #peppeboy #her_series #novella #love
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read moreRabiya Nizam
Picking up the pieces Chapter-1 (in caption) Getting carried to the hospital, the loud tocsin of the ambulance and the vehicles passing by were whirling like a whirlpool, her sense which was already fading like setting sun finally slipped into the darkness of unconsciousness. She never imagined herself in her situation. Although she never cherished her life or might have unlearnt it after that incident of her life. Yet this time she feared leaving like this. This once she wished not to die. Wanting to live the summer and witness the winte
Getting carried to the hospital, the loud tocsin of the ambulance and the vehicles passing by were whirling like a whirlpool, her sense which was already fading like setting sun finally slipped into the darkness of unconsciousness. She never imagined herself in her situation. Although she never cherished her life or might have unlearnt it after that incident of her life. Yet this time she feared leaving like this. This once she wished not to die. Wanting to live the summer and witness the winte
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दंश (In Caption) Part - I Ch - 16 Finale झींगुर की आवाज़ के बीच नीम की पत्तियों की उस झुरमुट निकल कर हवा ने खिड़की के पल्लों पर दस्तक दी तो जैसे यादों का ज्वार वापस समय के उस काले समुद्र की ओर वापस जाने लगी.. "नेहा मेमसाब.... नेहा मेमसाब..." शांति का स्वर मेरे कानों में ऐसा गूंजा जैसे वह मुझसे कहीं दूर शुन्य में खड़ी हो... फिर एक बच्चे की रोने की आवाज़ मेरे कानों से टकराई जो मुझे वर्तमान में खींच लाई...। मैं ने तुरंत घड़ी की ओर देखा, शाम के सात बज रहे थे, समय कैसे बीता ये पता ही नहीं चला; अवनि को भूख लगी होगी, मैं पलटी तो देखा शा
झींगुर की आवाज़ के बीच नीम की पत्तियों की उस झुरमुट निकल कर हवा ने खिड़की के पल्लों पर दस्तक दी तो जैसे यादों का ज्वार वापस समय के उस काले समुद्र की ओर वापस जाने लगी.. "नेहा मेमसाब.... नेहा मेमसाब..." शांति का स्वर मेरे कानों में ऐसा गूंजा जैसे वह मुझसे कहीं दूर शुन्य में खड़ी हो... फिर एक बच्चे की रोने की आवाज़ मेरे कानों से टकराई जो मुझे वर्तमान में खींच लाई...। मैं ने तुरंत घड़ी की ओर देखा, शाम के सात बज रहे थे, समय कैसे बीता ये पता ही नहीं चला; अवनि को भूख लगी होगी, मैं पलटी तो देखा शा
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दंश (In Caption) Part - I Ch- 15 इधर दीदी के जाने का सत्य हम अभी तक स्वीकार भी नहीं कर पाए थे कि अस्पताल से मां के मृत्यु का समाचार मिला; यह परिस्थिति कुछ ऐसी थी जैसे झंझावात और भूकंप एक साथ आ जाएं। मैं हताश सी वहीं बैठ गई, कुछ समझ नहीं आ रहा था, पापा को क्या बताऊं, स्वयं को कैसे संभालूं, मेरा मानसिक संतुलन इस बवंडर में हिल सा गया था। आमिर भाई ने मेरा हाथ पकड़ लिया, तब मुझे आभास हुआ कि मेरे जीवन को छोड़कर सृष्टि में सबकुछ सही था; मैं ने उनकी ओर देखा, मुझे नहीं याद उस समय मेरे नेत्रों से अश्रु धार बहे या नहीं...या मैं ने क्या
इधर दीदी के जाने का सत्य हम अभी तक स्वीकार भी नहीं कर पाए थे कि अस्पताल से मां के मृत्यु का समाचार मिला; यह परिस्थिति कुछ ऐसी थी जैसे झंझावात और भूकंप एक साथ आ जाएं। मैं हताश सी वहीं बैठ गई, कुछ समझ नहीं आ रहा था, पापा को क्या बताऊं, स्वयं को कैसे संभालूं, मेरा मानसिक संतुलन इस बवंडर में हिल सा गया था। आमिर भाई ने मेरा हाथ पकड़ लिया, तब मुझे आभास हुआ कि मेरे जीवन को छोड़कर सृष्टि में सबकुछ सही था; मैं ने उनकी ओर देखा, मुझे नहीं याद उस समय मेरे नेत्रों से अश्रु धार बहे या नहीं...या मैं ने क्या
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दंश (In Caption) Part - I Ch - 14 लाजपत नगर पुलिस स्टेशन के मुर्दा घर में मैं आमिर के साथ खड़ा था । मि. अवस्थी भी अपनी बेटी के साथ वहां आए थे। चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने उनके बदन का सारा ख़ून निचोड़ लिया हो । उस दिन पहली बार मुझे इतना ज़्यादा बुरा लग रहा था कि मैं इज़हार भी नहीं कर सकता ; अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि मैं तो एक पुलिस आॅफिसर हूं मुझे तो इन सबकी आदत होनी चाहिए तो जनाब मौत की आदत किसी को भी नहीं हो सकती , और हर लाश को देखकर इंसान को एक बार अपनी भूली हुई मौत याद आ ही जाती है। मैंने आमिर की तरफ़ देखा, वो एकटक तनु
लाजपत नगर पुलिस स्टेशन के मुर्दा घर में मैं आमिर के साथ खड़ा था । मि. अवस्थी भी अपनी बेटी के साथ वहां आए थे। चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने उनके बदन का सारा ख़ून निचोड़ लिया हो । उस दिन पहली बार मुझे इतना ज़्यादा बुरा लग रहा था कि मैं इज़हार भी नहीं कर सकता ; अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि मैं तो एक पुलिस आॅफिसर हूं मुझे तो इन सबकी आदत होनी चाहिए तो जनाब मौत की आदत किसी को भी नहीं हो सकती , और हर लाश को देखकर इंसान को एक बार अपनी भूली हुई मौत याद आ ही जाती है। मैंने आमिर की तरफ़ देखा, वो एकटक तनु
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दंश (In Caption) Part - I Ch- 13 "तनु ने मुझे बताया था कि जब वो अमन और उसके दोस्तों के साथ शिमला गई थी तब वहां अमन के दोस्तों ने शराब के नशे में उसके साथ बदतमीज़ी की थी।" "कैसी बदतमीज़ी...?" "सर बदतमीज़ी ...सर मैं आपको कैसे समझाऊं... वो...।" "आगे बोलो... अमन को पता है सब...?"
"तनु ने मुझे बताया था कि जब वो अमन और उसके दोस्तों के साथ शिमला गई थी तब वहां अमन के दोस्तों ने शराब के नशे में उसके साथ बदतमीज़ी की थी।" "कैसी बदतमीज़ी...?" "सर बदतमीज़ी ...सर मैं आपको कैसे समझाऊं... वो...।" "आगे बोलो... अमन को पता है सब...?"
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दंश (In Caption) Part - I Ch - 11&12 "मैं ने उसको नहीं उठाया साहेब... हां मैं तीन दिन तक उसका पीछा किया था... और चौथे दिन जब मैं उधर उसको उठाने के वास्ते गया तो मेरे को सुनने में आया कि लड़की गायब है, अपुन ने सोचा कि अच्छा ही है कि मेरा काम किसी और ने कर दिया... मैं आधा पैसा ले चूका था और आधा बचा हुआ था... तो मैं ने सोचा कि काम भी हो ही गया है तो मैं वो आधे पैसे रख लेगा... बाकी नहीं मांगेगा... वो मिसेज. अरोरा बहुत टेढ़ी औरत है साहब... बहुत कच-कच करती है...." जॉन ऐलन बोलता जा रहा था। इन लोगों को इस दुनिया का इतना तजुर्बा होता है
"मैं ने उसको नहीं उठाया साहेब... हां मैं तीन दिन तक उसका पीछा किया था... और चौथे दिन जब मैं उधर उसको उठाने के वास्ते गया तो मेरे को सुनने में आया कि लड़की गायब है, अपुन ने सोचा कि अच्छा ही है कि मेरा काम किसी और ने कर दिया... मैं आधा पैसा ले चूका था और आधा बचा हुआ था... तो मैं ने सोचा कि काम भी हो ही गया है तो मैं वो आधे पैसे रख लेगा... बाकी नहीं मांगेगा... वो मिसेज. अरोरा बहुत टेढ़ी औरत है साहब... बहुत कच-कच करती है...." जॉन ऐलन बोलता जा रहा था। इन लोगों को इस दुनिया का इतना तजुर्बा होता है
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दंश (In Caption) Part - I Ch- 10 "मैं यह रिस्क नहीं उठा सकती थी और न ही मुझे उस बंसल पर ज़रा सा भी भरोसा था इसलिए मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं चीज़ें अपने हाथ में लूंगी, इससे पहले की बात बिगड़ जाए।" इंसान की फ़ितरत भी बहुत अजीब सी है, वह हर गलत काम करते हैं, लेकिन सब की नज़रों से छुप कर, वो अलग बात है कि दूसरों की ख़ामीयां छुपाना उतना ही मुश्किल है जितना बिना सांस के जीना। बहरहाल हमलोग मुद्दे पर आते हैं। अपने केबिन में बैठा मैं मिसेज़. अरोरा के बयान की रिकॉर्डिंग सुन रहा था, वो आगे बोलीं.... "मुझे प्रोफ़ेसर.बंसल ने जब ये
"मैं यह रिस्क नहीं उठा सकती थी और न ही मुझे उस बंसल पर ज़रा सा भी भरोसा था इसलिए मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं चीज़ें अपने हाथ में लूंगी, इससे पहले की बात बिगड़ जाए।" इंसान की फ़ितरत भी बहुत अजीब सी है, वह हर गलत काम करते हैं, लेकिन सब की नज़रों से छुप कर, वो अलग बात है कि दूसरों की ख़ामीयां छुपाना उतना ही मुश्किल है जितना बिना सांस के जीना। बहरहाल हमलोग मुद्दे पर आते हैं। अपने केबिन में बैठा मैं मिसेज़. अरोरा के बयान की रिकॉर्डिंग सुन रहा था, वो आगे बोलीं.... "मुझे प्रोफ़ेसर.बंसल ने जब ये
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दंश (In Caption) Part - I Ch-9 "मैं ने तनु को धमकाया ज़रुर था पर मैं ने सच में कुछ नहीं किया। वो तो उस दिन के बाद कॉलेज भी नहीं आई; और चूंकि मेरे खिलाफ कोई वैसी विडियो भी रिलीज़ नहीं हुई तो मैं संतुष्ट हो गया क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि मेरी धमकी काम कर गई थी।" प्रोफ़ेसर एक सुर में सारी दास्तां सुनाए जा रहे थे। अब आप ये हरगिज़ मत सोच लिजिए कि शरीफ़ लोगों का दिल रुई सा नाज़ुक होता है, जो एक थप्पड़ में ही लाइन पर आ जाए, और जो अगर होता भी हो तो प्रोफ़ेसर के मुतल्लिक़ ये बात थोड़ी ग़लत थी। पुलिस स्टेशन लाने के बाद अंगुलियों पर जो
"मैं ने तनु को धमकाया ज़रुर था पर मैं ने सच में कुछ नहीं किया। वो तो उस दिन के बाद कॉलेज भी नहीं आई; और चूंकि मेरे खिलाफ कोई वैसी विडियो भी रिलीज़ नहीं हुई तो मैं संतुष्ट हो गया क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि मेरी धमकी काम कर गई थी।" प्रोफ़ेसर एक सुर में सारी दास्तां सुनाए जा रहे थे। अब आप ये हरगिज़ मत सोच लिजिए कि शरीफ़ लोगों का दिल रुई सा नाज़ुक होता है, जो एक थप्पड़ में ही लाइन पर आ जाए, और जो अगर होता भी हो तो प्रोफ़ेसर के मुतल्लिक़ ये बात थोड़ी ग़लत थी। पुलिस स्टेशन लाने के बाद अंगुलियों पर जो
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