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Samar Shem
आप सब को बुरा लग सकता हैं उसके लिए माफ़ी चाहूंगा लेकिन सच्चाई यही हैं 👇👇👇👇 अभद्र विचार पीड़ा ______________ हम उस देश में रहते हैं जहां गांड मरवाना तो स्वीकार्य है, लेकिन इस प्रक्रिया को अक्षरशः 'गांड मरवाना' लिखना या बोलना स्वीकार्य नहीं है! ये सब बोलने-लिखने पर हमें अश्लील, गंदा, नीच, लौंड़ा, लहसुन और न जाने किन-किन उपाधियों से अलंकृत कर दिया जाता है! यहां तक कि सोशल मीडिया पर आपको बैन तक कर दिया जाता है!
पीड़ा ______________ हम उस देश में रहते हैं जहां गांड मरवाना तो स्वीकार्य है, लेकिन इस प्रक्रिया को अक्षरशः 'गांड मरवाना' लिखना या बोलना स्वीकार्य नहीं है! ये सब बोलने-लिखने पर हमें अश्लील, गंदा, नीच, लौंड़ा, लहसुन और न जाने किन-किन उपाधियों से अलंकृत कर दिया जाता है! यहां तक कि सोशल मीडिया पर आपको बैन तक कर दिया जाता है!
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 1 - भक्ति पंचम पुरुषार्थ योगिनामपि सुर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना। श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।। (गीता 6-47)
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।।श्री हरिः।। 53 - श्याम भी असमर्थ आज फिर भद्र रूठ गया है। कन्हाई इसकी सुनता नहीं - इतना विलम्ब हो गया, इसके अरूण कोमल अधर सूखने लगे, उदर नीचा हो गया, यह क्षुधातुर है और भद्र की बात ही नहीं सूनता। ऐसा खेल में लगा है कि इसे अपने श्रान्त होने, क्षुधातुर होने का ध्यान नहीं। भद्र कहता है - 'अब चल, सब भोजन करें।' 'तू भूखा है? तुझे अभी से क्षुधा लगी है?' श्याम उलटे ही पूछता है - 'तू छीका नहीं लाया तो सुबल का छीका खा ले।' यह भी कोई बात हुई। भद्र अपनी क्षुधा के कारण कन्हाई को क्रीड़ा-विरमित होने को क
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।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है। कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह
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।।श्री हरिः।। 49 - सेवक नहीं गोप-बालक जब भी दो दल बनाकर खेलना चाहते हैं, एक दल के अग्रणी दाऊ होगें और उनके सम्मुख दूसरे दल में विशाल ही आ सकता है; क्योंकि शरीर में वही दाऊ के समान है। कन्हाई और श्रीदाम की जोडी है। श्याम सदा विशाल के साथ रहता है। श्रीदाम को दाऊ के साथ रहना है। भद्र चाहे तो भी नन्दनन्दन उसे दूसरे पक्ष में जाने नहीं दे सकता। यह तो जब दो दल बनने लगेगें तभी पुकारेगा - 'मैं भद्र के साथ रहूंगा। सुबल, तोक मेरे साथ रहेगें।' फलत: भद्र की जोड़ में ऋषभ को और तोक के सम्मुख अंशु को दुसरे पक
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।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली
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।।श्री हरिः।। 46 - कन्हाई का पक्षी आज एक पक्षी वाला आ गया नन्दग्राम में। एक ही पक्षी था इसके पास; किंतु इतना सुन्दर पक्षी तो इधर दीखता नहीं। मयूर की कलंगी से भी अत्यन्त सुन्दर कलंगी और सुरंग पक्षी। बालकों के समान मधुर भाषा में छोटे-छोटे शब्द मानवभाषा के बोल लेता है। पक्षीवाला कहता था - 'यह बहुत शुभ पक्षी है और अनेक बार इसकी भविष्यवाणियाँ सर्वथा सत्य होती हैं। यह आगमज्ञानी पक्षी है।' पक्षीवाला ही कहता था कि यह हिमालय के बहुत ऊपरी भाग में हिमक्षेत्र में होता है। इसने भी यह पक्षी किसी दूसरे से क्
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।।श्री हरिः।। 44 - नित्य मिलन श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो। मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं। भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि
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।।श्री हरिः।। 42 - कुछ बात है आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है। मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा
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।।श्री हरिः।। 37 - कनूँ कहाँ है? अचानक भद्र चौक्के गया - 'कनूँ कहाँ है?' यह कन्हाई दो क्षण न दीखे तो गोपकुमारों के प्राण छटपटाने लगते हैं। कृष्ण थोडी दूर नहीं चला जाय तो सब दौड़ते हैं होड़ लगाकर कि कौन पहिले नन्दलाल को स्पर्श करेगा। किंन्तु इस समय भद्र अपनी - अपने ह्रदय की व्याकुलता नहीं सोचता। भद्र चिन्तित्त हो उठा है कृष्ण के लियेय़ कन्हाई बहुत चपल है। वृक्षपर चढेगा, तो पतली शाखा पर भी चढने में¸हिचकता नहीं। दौड़ेगा तो नीचे देखेगा ही नहीं कि भूमि पर कुश, कण्टक, गड्ढे क्या हैं। जल में उतरेगा त
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