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PRAMYE27026

मैं उनसे बेहतर हूं जिनके घर में मेरे नाम के चर्चे होते हैं ,
क्योंकि हर घर में राम की फोटो लटकाई जाती है रावण की
 नहीं है ||

©PRAMYE27026 #Anger #नेत्र  #Najar

gum_nam_shayar_7

#Nightlight #नेत्र #nojota #nojato #nojatohindi #nojatoquotes #New #Shayar Anshu writer SHAYAR (RK) udass Afzal Khan gudiya deepak goyal

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Prince Prajapati

#scienceday #नेत्र Rakesh Srivastava

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Biikrmjet Sing

आंख मीच मग सूझ न जाई ताहें अनंत मिले किम भाई।। 2. एह नेत्रो मेरिओ हर तुम मैं जोत धरी हर बिन अवर न पेखो कोई नदरी हर निहालेया।।

अर्थ:- आंख बंद करके तो चलने वाले को रास्ता भी नहीं दिखता फिर आँख बंद करके ध्यान करने वाले को बिना देखे निराकार प्रकाश के दर्शन कैसे होंगे? 2. है मेरे नैनो में बसे मन इन शरीरिक नेत्रों में रब ने अपना प्रकाश यानी जोत भरी है इनके द्वारा तुम सिर्फ खाली स्पेस में बैठे निराकार प्रकाश को ही देखो और देख देख कर निहाल होते रहो।।

©Biikrmjet Sing #नेत्र

adhura shayar

खेल अगर तुम्हे मोहब्बत एक खेल लगता है
तो इस खेल में बड़ा खिलाड़ी भी एक बाजी हारता है

©HIMESH panwar #गेम #game #प्यार #pyaar #लव #Love #go #नेत्र

Writer_Sonu

nojoto #नेत्र #Adore

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Akash

हेल्लो फ्रेंड्स में नोजोटो में नया हूं 
 प्लीज़ सपोर्ट करो

©Akash #नेत्र 

#Mic

geet with you

मुझे पसंद हैं वो लोग जो मुझे पसंद नहीं करते।
वो कम से कम अपना होने का दिखावा तो नहीं करते।।

©geet with you #नेत्र #new #vibrant_writer #nojatohindi 

#Morningvibes

Hiren. B. Brahmbhatt

हमारी भावनाओं पर ही ,
     सब निर्भर करता है,
कब किसमे हम क्या देखते हैं,
    नेत्र तो केवल दृष्टि प्रदान करते हैं .. #भावनाएं #नेत्र

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण
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