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Rajendra Kushwaha

sunny kushwaha

Praduman Kumar

#kushwahaji Super Status Hindi song

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राजेश कुशवाहा 'राज'

--------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती, धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती, चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,

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--------------धन की आसक्ति------------
अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती,

रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती,
धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती,

चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,
भाव भंगिमाएं भी अब जेहन में न उतरती,

संत,कवि,वैद्य की अब है विद्वता बिगड़ती,
संपदा की ये लालसा है शौर्यता नकारती,

सत्य,दया,धर्म अब मनुजता को काटती,
दौलत की टोह में है वैमनस्यता पनपती, 

राज,शक्ति,सत्ता अब अनुराग की विरक्ती,
संपत्ति की आसक्ति ही है नर की विपत्ती,

कर्म,कांड,कृत्य सब है लोभ से पनपती,
धन से ही धर्म की है व्याख्या बदलती,

कृष्ण,राम,गौतम की ये धरा है पुकारती,
धर्म,दया,प्रेम से है ये जिन्दगी संवरती,

अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
माँ के दिल की ममता भी अब है पुकारती।

©राजेश कुशवाहा
  --------------धन की आसक्ति------------
अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती,

रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती,
धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती,

चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,

राजेश कुशवाहा 'राज'

--------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती, धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती, चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,

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--------------धन की आसक्ति------------
अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती,

रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती,
धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती,

चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,
भाव भंगिमाएं भी अब जेहन में न उतरती,

संत,कवि,वैद्य की अब है विद्वता बिगड़ती,
संपदा की ये लालसा है शौर्यता नकारती,

सत्य,दया,धर्म अब मनुजता को काटती,
दौलत की टोह में है वैमनस्यता पनपती, 

राज,शक्ति,सत्ता अब अनुराग की विरक्ती,
संपत्ति की आसक्ति ही है नर की विपत्ती,

कर्म,कांड,कृत्य सब है लोभ से पनपती,
धन से ही धर्म की है व्याख्या बदलती,

कृष्ण,राम,गौतम की ये धरा है पुकारती,
धर्म,दया,प्रेम से है ये जिन्दगी संवरती,

अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
माँ के दिल की ममता भी अब है पुकारती।

©राजेश कुशवाहा --------------धन की आसक्ति------------
अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती,
मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती,

रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती,
धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती,

चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती,

राजेश कुशवाहा 'राज'

"इक वादा" आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का। इक दूजे से करते हैं, वादा हम विश्वास का। अंबर में हम उड़ते हैं, पंख लगा अरमान का। चुपके चुपके बुनते हैं, एक सपना परिवार का, आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का,

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एक वादा आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का।
इक दूजे से करते हैं, वादा हम विश्वास का।

अंबर में हम उड़ते हैं, पंख लगा अरमान का।
चुपके चुपके बुनते हैं, एक सपना परिवार का,

आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का,

आंखों में सपने भरते हैं, प्यार, वफा, नित साथ का।
आपस में साहिल बनते हैं, तूफानों में कश्ती का।

आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का।

"राज" को हम बतलाते है, अपनो के "प्रिय" बातों का।
दुनिया को झुठलाते है, करते वादा हम साथ का।

आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का।

साथ ही सीढ़ी चढ़ते है, जीवन के इस प्रीत का।
ईश्वर से मांगा करते हैं, क्षमा, दया, नित रीत का।

आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का।

©राजेश कुशवाहा "इक वादा"
आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का।
इक दूजे से करते हैं, वादा हम विश्वास का।

अंबर में हम उड़ते हैं, पंख लगा अरमान का।
चुपके चुपके बुनते हैं, एक सपना परिवार का,

आओ प्रियवर करते हैं, इक वादा मुस्कान का,

राजेश कुशवाहा 'राज'

शुभ हो, नूतन हो, पावन हो, मंगल हो, मन भावन हो। संसार की सारी खुशियाँ हो, ये दिन भी मंगलमय हो, चाँद जैसी शीतलता हो, सूरज की किरणों सा तेज हो, फूलों सी कोमलता हो, पर्वत सी स्थिरता हो,

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इज़हार शुभ हो, नूतन हो, पावन हो,
मंगल हो, मन भावन हो।
संसार की सारी खुशियाँ हो,
ये दिन भी मंगलमय हो,
चाँद जैसी शीतलता हो, 
सूरज की किरणों सा तेज हो,
फूलों सी कोमलता हो,
पर्वत सी स्थिरता हो,
सागर सा गहरा प्रेम हो,
धरती जैसी ममता हो,
शुभ हो, नूतन हो, पावन हो,
मंगल हो, मन भावन हो,
संसार की सारी खुशियाँ हो
ये दिन भी मंगलमय हो।

जन्मदिन की अनंत अनंत हार्दिक शुभकामनाएं 
एवं 
बधाईयाँ आपको मेरे सबकुछ।

©राजेश कुशवाहा शुभ हो, नूतन हो, पावन हो,
मंगल हो, मन भावन हो।
संसार की सारी खुशियाँ हो,
ये दिन भी मंगलमय हो,
चाँद जैसी शीतलता हो, 
सूरज की किरणों सा तेज हो,
फूलों सी कोमलता हो,
पर्वत सी स्थिरता हो,

राजेश कुशवाहा 'राज'

आज तो बस शुरूआत हुई, जो कोमल फूलों की कलियों से है, ये यादें, वादे, प्यार, वफा तो बस महबूब की गलियों से है। मन में उठती हैं लहरे जो

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आज तो बस शुरूआत हुई,
जो
 कोमल फूलों की कलियों से है,
ये यादें, वादे, प्यार, वफा 
तो
बस महबूब की गलियों से है।
मन में उठती हैं लहरे 
जो 
मिलने के सपनों से है।
आज गुलाब से प्रेम बना
जो
उपवन के तितलियों से है।
ये प्रेम यू ही महकेगा,
जैसे
रोज गुलाब में खुशबू है।

©राजेश कुशवाहा आज तो बस शुरूआत हुई,
जो
 कोमल फूलों की कलियों से है,
ये यादें, वादे, प्यार, वफा 
तो
बस महबूब की गलियों से है।
मन में उठती हैं लहरे 
जो

राजेश कुशवाहा 'राज'

साथ मांगा था आपने, हृदय में रखा मैने। प्यार मांगा था आपने, समर्पण किया मैने। निजता मांगा था आपने, "राज" दिया मैने। रास्ता मांगा था आपने, राहों को दिया मैने। कलरव मांगा था आपने, सुर ताल दिया मैंने। फूल मांगा था आपने, उपवन दिया मैंने। रोशनी मांगा था आपने, चांदनी दिया मैने। पल-छिन मांगा था आपने, आजाद किया मैंने।

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साथ मांगा था आपने, हृदय में रखा मैने।
प्यार मांगा था आपने, समर्पण किया मैने।
निजता मांगा था आपने, "राज" दिया मैने।
रास्ता मांगा था आपने, राहों को दिया मैने।
 कलरव मांगा था आपने, सुर ताल दिया मैंने।
फूल मांगा था आपने, उपवन दिया मैंने।
रोशनी मांगा था आपने, चांदनी दिया मैने।
पल-छिन मांगा था आपने, आजाद किया मैंने।
साथ छोड़ा था आपने, क्या नही दिया मैंने।
दिल छीना था आपने, एहसास किया मैंने।
साथ मांगा था आपने, हृदय में रखा मैने।
प्यार मांगा था आपने, समर्पण किया मैने।।

©राजेश कुशवाहा साथ मांगा था आपने, हृदय में रखा मैने।
प्यार मांगा था आपने, समर्पण किया मैने।
निजता मांगा था आपने, "राज" दिया मैने।
रास्ता मांगा था आपने, राहों को दिया मैने।
 कलरव मांगा था आपने, सुर ताल दिया मैंने।
फूल मांगा था आपने, उपवन दिया मैंने।
रोशनी मांगा था आपने, चांदनी दिया मैने।
पल-छिन मांगा था आपने, आजाद किया मैंने।

Samrat Rahul Singh Kushwaha

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