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Ghumnam Gautam
होठों पर मुस्कान सजेगी,नयन सजल हो गाएँगे जब आप पधारेंगे प्रियवर, उर-पुर में कँवल खिल जाएँगे ©Ghumnam Gautam #GateLight #होठ #मुस्कान #नयन #उर #कँवल #ghumnamgautam
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read moreदिनेश कुशभुवनपुरी
मुक्तक: नैना नैना लगते तीखे - तीखे। अधर कमल के पुष्प सरीखे। हौले - हौले होंठ खुले जब। शब्दों ने उर भाषा सीखे॥ ©दिनेश कुशभुवनपुरी #मुक्तक #नैना #अधर #कमल #उर
Dr. Bhagwan Sahay Meena
उर से उर में उर बसें, उर करता उर दान। उर से वादा उर करें, उर का रखना मान। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #उर
Dr. Bhagwan Sahay Meena
उर से उर में उर बसें, उर करता उर दान। उर से वादा उर करें, उर का रखना मान। डॉ भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #उर
Vishal Parihar
मै निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ मै निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ है,यह अपूण॔ संसार न भाता मुझको मैं सपनो का संसार लिए फिरता हूँ #Angel
Swåßhímåñ Sîñgh
स्नेहकिरण भर मन्द मन्द अप्सरा की भाँति आती हो मेरे उर के आलिन्द निलय छवि से अपनी महकाती हो प्रेयसी यादों को छोङ यहाँ क्यों व्योम में तुम उङ जाती हो मेरे उर को तुम चीर चीर रूधिर से प्यास बुझाती हो ! #स्नेहकिरण
Pravin Kumar
प्रिया मिलन के भाव समेटे, जब प्रियतम की ओर चली। उर आनन्दित मन में हलचल खिल गई अलौकिक नेह कली ॥ नयन निहारेंगें उस छबि को अगम अपार स्नेह भर के। हृदय तृप्त होगा उस पल मेंं कर गहि अंक लगा कर के॥ चाँद पास आता धरती के लहरें तभी उठा करती हैं । आकुल मन का मीत बुलाये तब उर प्रीति बढ़ा करती है ।। सपने भी स्वर्णिम हो जाते यदि बाँहों में वो आ जाये । उर की कली कली खिलती है नयनों में बसन्त छा जाये ।। तुम स्नेह भरे उर को लेकर सपनों में उमड़ते आते हो । अन्तर बाहर को भिगो भिगो अस्तित्व को महका जाते हो।। अन्तर्मन में खिलते गुलाब मन भ्रमर देख ललचाता है । तन मन उपवन बन जाते हैं पल पल बसन्त छा जाता है ।।
Krishu
#OpenPoetry पतझर के मौसम में समेट कर पत्तों को लगाई थी किसी ने आग, पत्ते जलकर बन चूके थे राख। वो राख उर-उर कर मेरी तरफ आ रही थी, मेरे अकेलेपन में मुझे और अकेले होने का एहसास दिला रही थी। मैने पूछा राख के एक कण से- कि कोई चीज़ जलकर राख क्यों हो जाती है? कहा उसने जलने से भावनाये जल जाती है, और बिना भावनाओं के कोई राख के अलावा और हो भी क्या सकता है! जलने से जलन होती है, फिर भी क्यों पसंद है इंसान को जलना? ये वर्तमान समय की एक अबूझ पहेली है।। जलता आया है इन्सान आदिकाल से, और जलना हर इंसान को पड़ता है। लेकिन जला लेना, क्या ये मानवता के जलते हुए दिए की बुझने कि निशानी नही? मुझे इंतज़ार है उस सीतलता का- जो कम कर सके मनुष्य की जलन, क्यों समझ नही पाते हम मानव होने के महान उदेश्य को?? क्या उकसा रही हमे जलने को ये मंद मंद पवन?? धन्यवाद।। -आयुष गिरि #OpenPoetry
Nikhil Vairaagi
उस अँधेरे के सन्नाटे में, कोई पीछा कर रहा था डरा सहमा सा दबे पांव मैं, प्रकाश खोजने चला जा रहा था सन्नाटे की गूँज चीख़ती, ...उस अंधियारी रातों में जलती बुझती बत्ती,... कभी आगे कभी पीछे को उजियारा देती मन को..., उस अंधियारी रातों में भाग रहा था, पर किससे..? थी इक अबूझ पहेली ये सुनो...कहा उसने, पर हमने भी अब ठानी ये चाल बढ़ा दी निश्चय कर लिया, मुड़ कर देखूँगा ना अब क्या व्यर्थ चला कौंधी अभिधा, मंज़िल क्यों नही आती ये ठोकर खा कर चित्त को गिरा, आवाज़ सुनी अभिधा में पड़ा एक बार तो देखो मुड़कर तुम, यूँ डरो नही... न भागो मुझसे कितनी भी तुम चाल बढ़ा लो, कितना भी तुम दौड़ लगा लो मेरे बिना मंजिल तो क्या तुम, राह भी भटकते रह जाओगे कब तक भविष्य का साल ओढ़े तुम, मुझसे बचते रह पाओगे कब तक भागोगे मुझसे, मैं उर का तुम्हारे हिस्सा हूँ मैं अतीत तुम्हारी कोई बैर नही, मैं बिता तुम्हारा किस्सा हूँ हूँ जो प्रिये मैं सिखलाती, आत्मग्लानि की राह बताती देखो मेरे तुम अंग अंग को, महसूस करो जीवन रंग को आत्मबोध होगा उर का, राहें भटकी मिल जायेंगी होगा प्रवीण तू रस्ते का, अंतर्ज्योति जल जायेगी...। अतीत
अतीत
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