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Rajat Ranjan

"हम हर चीज के लिए मचलते हैं पर नहीं मिलती"

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मेरे सामने ही एक पूरी फैमिली बैठी थी।
मम्मी, पापा, बेटा और बेटी। 
हमारी टेबल उनकी टेबल के पास ही थी। हम अपनी बातें कर रहे थे, वो अपनी। 

पापा खाने का ऑर्डर करने जा रहे थे। वो सभी से पूछ रहे थे कि कौन क्या खाएगा?

बेटी ने कहा बर्गर। मम्मी ने कहा डोसा। पापा खुद बिरयानी खाने के मूड में थे। पर बेटा तय नहीं कर पा रहा था। वो कभी कहता बर्गर, कभी कहता कि पनीर रोल खाना है। 

पापा कह रहे थे कि तुम ठीक से तय करो कि क्या लोगे? अगर तुमने पनीर रोल मंगाया, तो फिर दीदी के बर्गर में हाथ नहीं लगाओगे। बस फाइनल तय करो कि तुम्हारा मन क्या खाने का है ? 

हमारे खाने का ऑर्डर आ चुका था। पर मेरे बगल वाली फैमिली अभी उलझन में थी। 
बेटे ने कहा कि वो तय नहीं कर पा रहा कि क्या खाए। 
मां बोल रही थी कि तुम थोड़ा-थोड़ा सभी में से खा लेना। अपने लिए कोई एक चीज़ मंगा लो। पर बेटा दुविधा में था। 
पापा समझा रहे थे कि इतना सोचने वाली क्या बात है ? कोई एक चीज़ मंगा लो। जो मन हो, वही ले लो। 
पर लड़का सच में तय नहीं कर पा रहा था। वो बार-बार बोर्ड पर बर्गर की ओर देखता, फिर पनीर रोल की ओर। 
 
मुझे लग रहा था कि उसके पापा ऐसा क्यों नहीं कह देते कि ठीक है, एक बर्गर ले लो और एक पनीर रोल भी। 
उनके बीच चर्चा चल रही थी। 
पापा बेटे को समझाने में लगे थे कि कोई एक चीज़ ही आएगी। मन को पक्का करो। 
*आखिर में बेटे ने भी बर्गर ही कह दिया।*

जब उनका खाना चल रहा था, हमारा खाना पूरा हो चुका था। कुर्सी से उठते हुए अचानक मेरी नज़र लड़के के पापा से मिली। 
उठते-उठते मैं उनके पास चला गया और हैलो करके अपना परिचय दिया। 
बात से बात निकली। मैंने उनसे कहा कि मन में एक सवाल है, अगर आप कहें तो पूछूं। 
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “पूछिए।”
"आपका बेटा तय नहीं कर पा रहा था कि वो क्या खाए। वो बर्गर और पनीर रोल में उलझा था। मैंने बहुत देर तक देखा कि आप न तो उस पर नाराज़ हुए, न आपने कोई जल्दी की। न आपने ये कहा कि आप दोनों चीज़ ले आते हैं। मैं होता तो कह देता कि दोनों चीज़ ले आता हूं, जो मन हो खा लेना। बाकी पैक करा कर ले जाता।"

उन्होंने कहा, “ये बच्चा है। इसे अभी निर्णय लेना सीखना होगा। दो चीज़ लाना बड़ी बात नहीं थी।
बड़ी बात है, इसे समझना होगा कि ज़िंदगी में दुविधा की गुंजाइश नहीं होती।
*फैसला लेना पड़ता है मन का क्या है, मन तो पता नहीं क्या-क्या करने को करता है। पर कहीं तो मन को रोकना ही होगा।*
 अभी नहीं सिखा पाया तो कभी ये कभी नहीं सीख पाएगा। 
“इसे ये भी सिखाना है कि *जो चाहा, उसे संतोष से स्वीकार करो।*
इसीलिए मैं बार-बार कह रहा था कि अपनी इच्छा बताओ।
*इच्छा भी सीमित होनी चाहिए।*
“और एक बात, इसे समझाता हूं कि *जो एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते, वो हर चीज़ के लिए मचलते हैं।* 
*और सच ये है कि हर चीज़ न किसी को मिलती है, न मिलेगी।”* "हम हर चीज के लिए मचलते हैं पर नहीं मिलती"

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कल दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक सरदारजी मिले। साथ में उनकी सरदारनी भी थीं। सरदारजी की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन सरदारनी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के सहज प्रभाव को छोड़ दें, तो दोनों फिट थे। सरदारनी खिड़की की ओर बैठी थीं, सरदारजी बीच में और सबसे किनारे वाली सीट मेरी थी। उड़ान भरने के साथ ही सरदारनी ने कुछ खाने का सामान निकाला और सरदारजी की ओर किया। सरदार जी कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे। फिर फ्लाइट में जब भोजन सर्व होना शुरू

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Story of Sanjay Sinha 
 कल दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक सरदारजी मिले। साथ में उनकी सरदारनी भी थीं। सरदारजी की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन सरदारनी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के सहज प्रभाव को छोड़ दें, तो दोनों फिट थे। सरदारनी खिड़की की ओर बैठी थीं, सरदारजी बीच में और सबसे किनारे वाली सीट मेरी थी। उड़ान भरने के साथ ही सरदारनी ने कुछ खाने का सामान निकाला और सरदारजी की ओर किया। सरदार जी कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे। फिर फ्लाइट में जब भोजन सर्व होना शुरू

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