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NC
चुप्पी मन को चुभती है बदरा गरज कर शांति की बूंदे बरसा तरस गए हैं श्रवण को तेरा ये गर्जन पिपासा को बदरा कुछ तो बुझा ।। तू गरजे तो बिजुरी कौंधे मन की बिजुरी आंखें मूंदे हो शांत मन का अंधेरा बरसे तन पर तरसी बूंदें ।। तेरी गर्जन शांत कर दे वो रूदन जीवों का वो करुण क्रंदन निरीह प्राणियों पर तरस तो खा आज बरसों की प्यास बुझा ।। ©NC #cloud #life कविताएं कविता कोश
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read moreDeepa Ruwali
चंद बादलों की ओट से पूरी रात तिमिर छाया रहा, और हम रातभर चांद के दीदार में बैठे रहे।। ©Deepa Ruwali #SAD #Life #Night #cloud #Poetry #Shayari
Illy Lin
Dheeraj Kumar Singh
ओ बादल , तू आ जा रे मेरे शहर की छत पर छा जा रे ये सूरज बहुत भभकता है इसको जरा समझा जा रे बहुत तपाया इसने हमको अब जम के बूंद बरसा जा रे सूख गई है धरा ये सारी इसको तनिक भीगा जा रे झुलस गए है नन्हे पौधे इनको जरा हर्षा जा रे रे बादल , तू आ जा रे , मेरे शहर की छत पर छा जा रे ©Dheeraj Kumar Singh #Summer #poem #na #Nature #rain #cloud #City #nojohindi #Love #Earth
Sheeba
White Fruit of darkness tastes sometimes good when it downpours on a barren land....... ©Sheeba #Cloud positive_quotes
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read moreRam Shankar
वक्त पर बारिश हो तो यहां खेत गुलजार रहता है नहीं तो कौन यहां किसी के लिए तैयार रहता है मौसम जब भी बेवक्त करवटें बदले यहां मेहनत लाख करे किसान बेकार रहता है सुखी मिट्टी को है सदियों से बादल की तलब जैसे प्यार में कोई आशिक बेकरार रहता है चुनाव की हर किताब में यहां मौसम सुहाना है सपनों में उलझा हुआ कहीं बेरोजगार रहता है चुनाव की फसल बस कटने पर देखिए वादों पे कौन कितना यहां सरकार रहता है दिन का सूरज समझे या रात का तारा उसको एक सोच का फर्क है जो बनके दीवार रहता है ये वक्त का समंदर है राम हर हिसाब से गहरा कोई इस पार रहता है कोई उस पार रहता है *राणा रामशंकर सिंह* उर्फ बंजारा कवि 🖊️.... #cloud
Poet Maddy
इन ज़ुल्फों के बादल को हटा लो ज़रा, चांद से चेहरे को बाहर निकालो ज़रा......... तुम्हारी तबस्सुम में अलग सी कशिक है, चलो ऐसा करो तुम मुस्कुरालो ज़रा........... ©Poet Maddy इन ज़ुल्फों के बादल को हटा लो ज़रा, चांद से चेहरे को बाहर निकालो ज़रा...... #Cloud#M4p#Face#Moon#Fra#Lips#Smile...........
ଶ୍ରଦ୍ଧାଶିଷ୍......
କେତେ ପର୍'କାରେ ଗରିବ୍ ଦେଖ୍'ବୁ ନାଇଁ କରି ହୁଏ ଠାବ୍, ମନର ଗରିବ୍, ବିଚାରେ ଗରିବ୍ ଆର୍ ଗରିବ୍ ଆଏ କାର୍ ସ୍ବଭାବ୍ । ଧନର୍ ଗରିବ୍ ,ଗରିବ୍ ନୁହେ ତାର୍ ଧନର୍ ଖାଲି ଅଭାବ୍, ବେଭାର୍ ଟିକ୍'କ ବନେ ବୋଲି କରି ସବୁଠାନେ ତାର୍ ଭାବ୍ । ମନର୍ ଗରିବ୍ ଦୁଇ ପେଚିଆ ଉପ୍'ରେ ଉପ୍'ରେ ବନେ, ଭିତର କେ ଆର୍ କିଏ ଦେଖୁଛେ ଅହଙ୍କାର୍ ଥିବା ଘନେ । ବିଚାରେ ଗରିବ୍ ଅବିଚାର୍ ଥି ଏକ୍ ନମର୍ ରଜା । ଅଡ଼ୁଆ ଭିତରେ ଲୁକ୍'କୁ ପକେଇ ଦେଖ୍'ବା ଖାଲି ମଜା । ବେଭାରେ ଗରିବ୍ ଦୁର୍'ବେଭାର୍ କେ ନିଜର୍ ବୋଲି ଭାବେ , ଆର୍ ନୁକୋ କଥା କେ ଛି ଥୁ କରି ରହେସି ନିଜର୍ ଲାଭେ । ଆର୍ କେତେ ଯେ ଗରିବ୍ ଥିବେ ନାଇଁ ମିଲେ ତାର୍ ଧାର୍ , ନିଜେ ବନେ ଥିଲେ ସବୁ ବନେ ଇନେ ଇ କଥା ଟା ସାର୍ । ମୁନୁଷ୍ ଜୀବନ୍ ବଡ଼ା ଦୁର୍ଲଭ୍ ପୁଇଁନ୍ କଲେ ମିଲେ , ଧନ୍ ଥାଇ କରି ଗରିବ୍ ହେଲେ ଘାଣ୍ଟି ହେବୁ ଅର୍କଲେ । ©ଶ୍ରଦ୍ଧା...... #cloud ଗରିବ୍
#cloud ଗରିବ୍
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