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RJ VAIRAGYA
White तू तरुण देश से पूछ अरे, गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग? अंबुधि-अंतस्तल-बीच छिपी यह सुलग रही है कौन आग? प्राची के प्रांगण-बीच देख, जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल, तू सिंहनाद कर जाग तपी! मेरे नगपति! मेरे विशाल! रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर, पर, फिरा हमें गांडीव-गदा, लौटा दे अर्जुन-भीम वीर। कह दे शंकर से, आज करें वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार। सारे भारत में गूँज उठे, ‘हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार। ले अँगड़ाई, उठ, हिले धरा, कर निज विराट् स्वर में निनाद, तू शैलराट! हुंकार भरे, फट जाय कुहा, भागे प्रमाद। ©RJ VAIRAGYA #rjharshsharma #ramdharisinghdinkar
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White पूछे सिकता-कण से हिमपति! तेरा वह राजस्थान कहाँ? वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिये फिरनेवाला बलवान कहाँ? तू पूछ, अवध से, राम कहाँ? वृंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ? ओ मगध! कहाँ मेरे अशोक? वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ? पैरों पर ही है पड़ी हुई मिथिला भिखारिणी सुकुमारी, तू पूछ, कहाँ इसने खोयीं अपनी अनंत निधियाँ सारी? री कपिलवस्तु! कह, बुद्धदेव के वे मंगल-उपदेश कहाँ? तिब्बत, इरान, जापान, चीन तक गये हुए संदेश कहाँ? वैशाली के भग्नावशेष से पूछ लिच्छवी-शान कहाँ? ओ री उदास गंडकी! बता विद्यापति कवि के गान कहाँ? ©RJ VAIRAGYA #rjharshsharma #ramdharisinghdinkar
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White उस पुण्य भूमि पर आज तपी! रे, आन पड़ा संकट कराल, व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे डँस रहे चतुर्दिक विविध व्याल। मेरे नगपति! मेरे विशाल! कितनी मणियाँ लुट गयीं? मिटा कितना मेरा वैभव अशेष! तू ध्यान-मग्न ही रहा; इधर वीरान हुआ प्यारा स्वदेश। किन द्रौपदियों के बाल खुले? किन-किन कलियों का अंत हुआ? कह हृदय खोल चित्तौर! यहाँ कितने दिन ज्वाल-वसंत हुआ? ©RJ VAIRAGYA #ramdharisinghdinkar #rjharshsharma
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White ओ, मौन, तपस्या-लीन यती! पल भर को तो कर दृगुन्मेष! रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल है तड़प रहा पद पर स्वदेश। सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना की अमिय-धार जिस पुण्यभूमि की ओर बही तेरी विगलित करुणा उदार, जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत सीमापति! तूने की पुकार, ‘पद-दलित इसे करना पीछे पहले ले मेरा सिर उतार।’ ©RJ VAIRAGYA #ramdharisinghdinkar #rjharshsharma
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White मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरुष के पुंजीभूत ज्वाला! मेरी जननी के हिम-किरीट! मेरे भारत के दिव्य भाल! मेरे नगपति! मेरे विशाल! युग-युग अजेय, निर्बंध, मुक्त, युग-युग गर्वोन्नत, नित महान्, निस्सीम व्योम में तान रहा युग से किस महिमा का वितान? कैसी अखंड यह चिर-समाधि? यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान? तू महाशून्य में खोज रहा किस जटिल समस्या का निदान? उलझन का कैसा विषम जाल? मेरे नगपति! मेरे विशाल! ©RJ VAIRAGYA #ramdharisinghdinkar #rjharshsharma
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read moreDr. uvsays
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read moreसंस्कार पटैरिया
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। #Ramdharisinghdinkar
Amlan Sourav Dash
Rasmirathi . . #RASHMIRATHI #Mahabharat #ShriKrishna #Krishna #lordkrishna #ramdharisinghdinkar #Poetry
read moreKavi Aditya Shukla
सम्मुख असंख्य बाधाएँ हैं, गरदन मरोड़ते बढ़े चलो, अरुणोदय है, यह उदय नहीं, चट्टान फोड़ते बढ़े चलो। आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस कवि, लेखक व ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित राष्ट्रकवि "रामधारी सिंह 'दिनकर' जी" की जयंती पर सादर नमन करता हूँ। #कवि #RamdhariSinghDinkar ©Kavi Aditya Shukla #Nojoto #Like #follow
Rudeb Gayen
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। -रामधारी सिंह दिनकर ©Rudeb Gayen #janmashtami #ramdharisinghdinkar #RASHMIRATHI #Nojoto #nojotohindi #nojotohindipoetry