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Herat Udavat
मूछ का दाना अभी ही फूटा था, जज्बातो का लहूमे सेहलाब उमड़ा था, बाइक पे सावर हम अकेले ही अपनी बारात लेके आये थे। निम के पेड के नीचे पनपती वो प्यार की मुलाकत आज भी मुजे याद है, वो पेहला सावन, वो बारिश की बुंदे आज भी बहुत खास है। सामने एक्टिवा पर आती दिखती हर लडकी मानो हमारी ही दूल्हन थी, नाखून चबाते बारिश में किया उसका इंतजार , आज भी मुजे याद है, वो पेहला सावन वो बारिश की बूंदे आज भी बहुत खास है। ओढ़ राखा था दूपट्टा तूमने, आंखो पे भी लगाया था खुबसूरत सा चश्मा, उस चश्मे के भीतर छूपा हसीन आंखों का काजल आजभी हमे याद है, वो पेहला सावन वो बारिश की बुंदे आज भी बहुत खास है। अभी तो हटाया था दूपट्टा मुह से तूमने और ठंडी हवामे तुम्हारी जुल्फे लहराई थी, चांद उतरा मानो धरती पे, बादल ने सुरज की किरनें ढकवाई थी, कायनात पे आयी क़यामत आज तक हमे याद है, वो पेहला सावन, वो बारिश की बुंदे, आज भी बहुत खास है। वो सावन का जमके बरसाना, वो बिजली का बेवजह चमकना डर के मारे तेरा यू मुजसे लिपटना, आजभी मानो रोम रोम में दहकती एक आग है, वो पहेला सावन , वो बरिश की बूंदे आज भी वो बहुत खास है। होठों को चूमा था उसके, बारिश की बूंदो ने, कुछ मोती ऊसके केसूं परभी गिरे थे, होठों से बेहती उन बूंदो को पीनेकी तलब आज भी आबाद है, वो पेहला सावन वो बूंदे आज भी बहुत खास है। अँखो के आंसु मे बारिष का घूलना, उसको जाते हूये दुर तक देखना, उसको पाने के लिए दिल मे उठी हुयी तलब आज भी बरकारार है, वो पेहला सावन, वो बारिश की बूंद आज भी बहुत खास है। फ़िर से गुज़र रहा हूँ, उन्ही रस्तो पे बहोत सालो के बाद, मानो वही ठहर गया हूं में ऊस मुलाकात के बाद, निम के पेड के नीचे पनपे मेरे नादान ईश्क पर आज भी मुजे नाज़ हे, वो पेहला सावन ,वो बरिश की बुंदे आज भी बहुत खास है।। #OpenPoetry कुछ जज्बात पहेली बारिश में मिले पहेले प्यार के नाम,,, । #नादानईश्क #romanticpoem #hindipoetry #firstlove #loveinrain #romance
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read moreAmit Srivastava
दूर तक छाए थे बादल और कहीं कोई साया न था इस तरह बरसात का मौसम अब की कभी आया न था रोज़ धुंधला सा जो दिखता था एक अक्स सा कोई बहुत बेचैन रहा दिल इन दिनों कोई सुकून पाया न था ✍अमित #बादल #बरिश #ज़िन्दगी
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