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Vikas Sahni
#जनवरी_की_परी अनौपचारिक वर्दी में, सुबह की सर्दी में कदम जम गये तो हम थम गये और हार कर दोबारा ओढ़ लिया कंबल लेकिन लेंगे कब तक इनका संबल? क्योंकि कभी-कभी कंबल कमजोर बनाते हैं हमें क्योंकि कभी-कभी संबल कमजोर बनाते हैं हमें, ये आलस्य करना सिखाते हैं हमें। आ चुका है नया साल मगर है वही हाल कि ओढ़कर रजाई दे रहे हैं बधाई हाथ में मोबाइल लेकर संदेश करते-करते बिस्तर पर। कि कैसे उठना है, कि कैसे उठना है करते-करते साहस बज गये सात कि जल्दी बीत गयी रात यह सोचकर मन उदास हुआ और फिर यह कविता का देवदास हुआ सूरजवार की साँझ का संतरा सूरज हो गया ठंड के कारण सफेद सूरज, न जाने कब होगा यह सफेद सूरज पीला! हुआ जाता है मन ढीला। इस प्रकार यद्यपि यहाँ नया साल है मगर मन में मलाल है इसलिए आज से होना है मुक्त पूर्णतया लाज से संघर्ष के मामले में और मेहनत के गमले में जुनून का पौधा उगाना है, यह ठाना है कि और अधिक आगे जाना है। इस प्रकार इस रचना के रूप में, ठंड की धुंधभरी धूप में कविता बनी जनवरी की परी और फरवरी की परी भी बनेगी मेरी कविता। ....✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #जनवरी_की_परी
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